मिथिलावाद।
मिथिलावाद!
प्रवीण नारायण चौधरी आ आचार्य रामानंद मंडल के वाद-विवाद।इजोत वाह्टस ग्रुप पर चैटिंग।
प्रवीण नारायण चौधरी-
कनिक जवाब ताकू तः
१. अपन मिथिला समाज मे राजनीति के अर्थ कि रहि गेल अछि?
२. नेता आ जनप्रतिनिधि केना चुना रहल अछि?
३. समाज आ सार्वजनिक सरोकार पर केकर निगरानी देखि रहल छी?
४. एहि अकलबेरा (अराजक राजनीतिक गन्डमगोल व्यवस्था) मे ‘मैथिली-मिथिला’ अर्थात् ‘मिथिलावाद’ सँ कतेक लोक ताल्लुक रखैत अछि?
५. समाज आ परिवार मे विखन्डन सँ केहेन दूरगामी असर पड़ैत अनुमान लगबैत छी? किंवा केहेन उपद्रव आ हिन्सा के विद्यमान दुरावस्था स्पष्ट देखाय लागल अछि?
जिवन्त समाज मे मुंह बाबिकय ठाढ़ किछु महत्वपूर्ण प्रश्न सब पर सक्षम आ सामर्थ्यवान विद्वत् समाज केँ चिन्तन करहे टा पड़त।
देखने होयब – वोट के संख्या अपन पक्ष मे पाड़बाक लेल १-२% (अल्पसंख्यक) अगड़ा जाति (एलिट्स, प्रबुद्धजन, आदि) केँ अपन मूल गाम-ठाम सँ उपटिकय प्रवास स्थल पर जाय कोहुना रोजी-रोटी कमेबाक आ परिवार केँ बचेबाक बाध्यकारी परिस्थिति तथाकथित ‘समाजवादी आ सामाजिक न्याय वला राजनीति’ करनिहार ‘भूराबाल साफ करो’ कहिकय कय देलक। एकर दुष्परिणाम यैह भेल छैक जे आब समाज मे कोनो बात लेल कियो केकरो रोकटोक आ हंट-दबार न आब अनुशासन आ सुसभ्यता लेल शिक्षक अथवा पैघ अभिभावक लोकनि धियोपुता केँ हंटय-दबारय नहि छैक। कारण ओ ‘सामाजिक न्याय’ तेना अपन रंग देखा देलकैक समाज केँ जे नीति-नैतिकता गेल भाँड़ मे, सब अपनहि स्वच्छन्दता मे आकन्ठ मस्त अछि। तथापि, चिन्तन चलैत रहबाक चाही। तेँ ई सवाल राखल अछि।
काल्हि एकटा मंच पर खुलेआम चुनौती दैत कहलियैक जे एखन त हिन्सक रग्गड़ मात्र ट्रेलर देखि रहल छी, किछु वर्ष (मात्र ५ सँ १० वर्ष) मे अहाँ ‘रक्तरंजना’ देखब। रक्तक धार बहयवला जनसंघर्ष केना प्यासल दृष्टि सँ हमर मिथिला समाज केँ ग्रास बनबय लेल ताकि रहल अछि से ओ दूर… किछु दूर पर ठाढ़ ओ काल हमरा ओहिना नजरि पड़ि रहल अछि। आगामी पीढ़ी लेल चिन्ता बढ़ि रहल अछि। पलायन सँ पहिने सँ टूटल, किछु समय बाद जनसंघर्ष मे समाज केँ फँसैत एखनहि देखि रहल छी। चिन्तन तेँ बढ़ि रहल अछि।
मिथिलावाद जिन्दाबाद!!
अपन मौलिक संस्कार केँ शीघ्रातिशीघ्र बचबय जाउ।
हरिः हरः!!
आचार्य रामानंद मंडल –
समाजवाद आ सामाजिक न्याय के विरोध इहे हय मिथिलावाद।
तब त समाजवादी आ सामाजिक न्याय के लेल मिथिलावाद पर विचार करनाइ आवश्यक हो जाइ हय। सधन्यवाद।
आचार्य रामानंद मंडल –
मिथिलावाद के सिद्धांत के बारे मे बताउ। मिथिलावाद के जनक कोन हतन।
प्रवीण नारायण चौधरी –
मिथिलावाद के सिद्धान्त बहुत सहज अछि। जनक समाजवाद एकर मूल आधार छी। समाज मे कियो केकरो बारि नहि सकैत अछि। सभक श्रमदान केँ परस्पर उपयोग मे आनि सौहार्द्रताक बन्हन मे कसिकय बन्हायल समाज, जे मिथिलाक सामान्य संस्कार आ जीवन पद्धति मे समाहित अछि। डोमक चंगेरा-कोनियाँ, कुम्हारक अहिबात-पुरहर, मालीक मौर, सोनारक सोन, कमारक वेदी, चमारक रसनचौकी, नौआक होम-सामग्री, बाभनक मंत्रपाठ, धोबिनक सोहाग, आदिक जरूरत एकटा विवाह संस्कार लेल आवश्यक बनायल गेल अछि, ठीक तहिना मिथिलाक समस्त कर्म-सिद्धान्त मे एक-दोसरक रक्षा प्रति वचनबद्धताक नीति रहल अछि। आजुक अर्थप्रधान युग मे जातीय कर्म आ जाति-पाँतिक कोनो मर्यादा-सीमा नहि बचि जेबाक कारण आधुनिक व्यवहार अनुसार समाजक वर्गीकरण करैत चारि मूल वर्णक आधार पर व्यवस्थापन करब जरूरी अछि।
मन्थन एहि सब विन्दु पर करियौक
लोकतंत्र मे लोक द्वारा चुनल गेल सरकार लोकहित मे बनायल गेल संविधान मुताबिक चलायल जाइत छैक। एतय दुइ गो बात पर गौर करू – लोकहित मे बनायल गेल संविधान आ लोक द्वारा चुनल गेल सरकार, संविधान मे समय-समय पर संशोधन करैत लोकहित के सही मूल्यांकन जरूरी छैक, जँ से नहि भेल त दुर्घटना तय अछि।
आइ हालत एहेन अछि जे लोकहित कम जातिहित-धर्महित आदिक चर्चाक आधार पर लोकमत (अभिमत) प्राप्त कय जनप्रतिनिधि चुनल जाइछ। लोकहित के सर्वोपरि सिद्धान्त लेल लड़निहार कोनो उम्मीदवार केँ पार्टी टिकट नहि दयकय करोड़ों रुपया खर्च करबाक कुब्बत रखनिहार अधिकांश धनकुबेर केँ चुनाव लड़बैत छैक। ओहि जनप्रतिनिधिक कोनो माइन-मोजर सदन मे नहि रहि पार्टी लाइन पर चलब ओकर नीयति बनि जाइत छैक। संविधान प्रदत्त पार्टी विशेषाधिकार ‘व्हिप’ मानू विशेष विषय लेल मात्र नहि, सब विषय पर लागू रहल करैत छैक। कोनो जनप्रतिनिधि अपन क्षेत्र आ लोकक प्रतिनिधित्व कतेक कय पबैत अछि से देखिते छी। एहेन स्थिति मे वास्तविक लोकतंत्र चलल या कोनो प्राइवेट लिमिटेड कम्पनीक सरकार चलल? कि ई ब्रिटिश सम्राज्यक ईस्ट इंडिया कम्पनी जेकाँ वर्तमान लोकतांत्रिक सरकार चलब नहि भेलैक? मन्थन एहि विन्दु सब पर करियौ।
लोकहित के सिद्धान्त सुपरिभाषित छैक, स्वयं प्रकृति द्वारा ई परिकल्पना पर संसार टिकल अछि जे पैघ-छोट सब मिलिजुलि रहू। जीव के आहार जीव हेतय, लेकिन आहार योग्य सजातीय जीव किन्नहुं नहि हेतैक। मानव कदापि मानव केँ नहि खाय। लेकिन वर्तमान ‘सामाजिक न्याय’ मे ‘भूराबाल साफ करो’ वला लोक आओत आ ‘मसीहा’ कहाओत, ओकरा ‘समाजवादी धाराक राजनेता’ मानल जायत। आब बताउ! एहेन स्थिति मे केहेन समाजक निर्माण होयत आ ओहि ठामक प्रजाक हित केना होयत? मन्थन एहि सब विन्दु पर करियौक।
हरिः हरः!!
आचार्य रामानंद मंडल –
हम त सोचैत रहली हय कि कोनो आधुनिक सामाजिक चिंतक के विचार हय मिथिलावाद। परंतु इ त मनुस्मृति वा मनु संविधान पर आधारित वर्ण-व्यवस्था वा वर्णाश्रम आधारित मिथिलावाद हय।वा मिथिलावाद के खोल मे ब्राह्मणवाद हय। ब्राह्मणवाद समाजवाद आ सामाजिक न्याय विरोधी सिद्धांत हय।कृषक जनक आ धरती पुत्री सीता के मिथिलावाद से दूरे रखूं।अइला कि इस दूनू सर्वमान्य हतन। सधन्यवाद।
प्रवीण नारायण चौधरी –
ब्राह्मणवाद, मनुवाद, मनु संविधान, वर्णव्यवस्था, वर्णाश्रम धर्म के परिभाषा अपनेक दृष्टि मे कि अछि ताहि पर हम कोनो विचार नहि थोपब आदरणीय महानुभाव।
परञ्च ई तथाकथित समाजवाद आ सामाजिक न्याय के बात कहल त बताउ ७५ वर्ष के स्वतंत्र भारत मे अपने गैर-ब्राह्मण मे शिक्षा आ रोजी-रोजगार सँ लैत वर्गीय अन्तर केँ केना सम्बोधन होइत देखलहुँ?
आर, एहि ७५ वर्ष मे रक्तरंजना (जाति-धर्म मे विखन्डित समाज मे जनसंघर्ष) के प्रत्यक्ष तस्वीर कि बुझबैत अछि अहाँ केँ? भूराबाल त साफ भ’ गेल। आइ समाज केँ दिशानिर्देश करयवला आधार नव संविधान सँ समस्याक कतेक निदान भ’ सकल अछि?
आचार्य रामानंद मंडल-
हमर अंहा के विचार समानान्तर धारा के विचार हय। समानान्तर रेखा आपस मे न मिलय हय। परंतु गणितज्ञ के मानव हय कि समानान्तर रेखा अनंत विंदू पर मिलय हय। सधन्यवाद।
प्रवीण नारायण चौधरी –
आर, ई नीक सँ याद राखू – लोकतंत्र मे लोक के संख्या गण्य होइत छैक। ब्राह्मणक संख्या मुठ्ठी भरि छैक, सेहो पलायन उपरान्त गाम-के-गाम खाली कय देलक। काल्हि मिथिलावाद केँ चलबय लेल ओ ब्राह्मण केँ ब्रह्माजी के पावर भेटि जेतैक से समझ जँ मन मे अछि त अपन शिक्षा-दीक्षा आ बौद्धिक क्षमता पर पुनर्विचार करब। चलबाक त अछि भारतीय संविधानहि अनुसार, वैह व्यवस्था, वैह विचार आ वैह तथाकथित समाजवाद आ सामाजिक न्याय, आरक्षणक राजनीति, धार्मिक उन्माद, आदि।
प्रवीण नारायण चौधरी-
कोन वैज्ञानिक समानान्तर रेखा के अनन्त विन्दु पर मिलय हय कहलकय? कोन ठाम पढ़लियैक ई गणित सर?
विचार के मिलन विन्दु व्यक्ति अनुसार नहि होइत छैक। दर्शन कहैत छैक जे विचार मे समानता आ भिन्नता देश, काल व परिस्थिति अनुसार होइत छैक। अहाँ जे किताब पढ़लहुँ, जाहि सामाजिक परिकल्पना मे लागल छी, ताहि मे वैचारिक भिन्नता रहितो लोकमिलन तय विषय छैक। समाज सँ बाहर न अहाँ आ न हम। असगरे लोक फेफियाकय मरि जायत।
आचार्य रामानंद मंडल –
जी। महाविद्यालय मे प्रोफेसर साहब के कहब।वोहो बीएससी मे।वोना अंहा कोन विषय से पढले छी।आ अपने कंहा के बासी छी जानकारी देब।
आचार्य रामानंद मंडल –
समानान्तर रेखा अनंत विंदू पर मिलैय छैय। एगो परिकल्पना हय।पढैले हतन।स्व भैरव झा,स्व अभिमन्यु झा । गोयनका कालेज, सीतामढ़ी।
प्रवीण नारायण चौधरी –
हम गणित विषय के शिक्षक रहल छी। विराटनगर मे अंग्रेजी आवासीय विद्यालयक पूर्व शिक्षक आ वर्तमान मे निर्यात प्रबन्धक (निजी संस्थान) मे कार्यरत छी। जनक-जानकीक सन्तति ‘मैथिल’ छी। आत्मविद्याक आश्रयदाता भूपाल जनक मैथिलक प्रजा तेँ मैथिल छी। ओना भूराबाल के ‘बा’ छी।
आचार्य रामानंद मंडल –
जी। मनुष्य एकटा सामाजिक प्राणी हय।अइ मे कोनो संदेह न हय। परंतु समाज पर कोनो व्यक्ति आ समुहे शासन करय हय।तै कोनो वाद के जन्म होय हय। राजतंत्र वा प्रजातंत्र।
प्रवीण नारायण चौधरी –
प्रजातंत्र के परिभाषा त स्पष्टे अछि। भोरे लिखने छी। प्रजाक मत सँ जनप्रतिनिधि केना चुनाइत अछि आ प्रजाहितक बात करैत कोना संविधान तैयार करैत अछि, आ पार्टी सँ टिकट व लोक सँ मत प्राप्त करबाक मूलाधार आइ करोड़क-करोड़ टका व बाहुबल कोना छैक, जितलाक बादो ओकर बात सदन मे कतेक चलैत छैक आ केना प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी जेकाँ गवर्नेन्स चलैत अछि, सब बात पर लिखने छी। प्रजाहित लेल परिकल्पित संविधानक दायरा सँ प्रजाक कतेक हित भ’ रहल छैक, कतेक विकास देखि रहल छी, सारा विन्दु पर प्रकाश देल अछि।
आचार्य रामानंद मंडल –
भूराबाल त बिहार होइत नेपाल चल गेल हय।वोना भूराबाल चार गो जाति के संक्षिप्ताक्षर हय।हां बुरा लगय छैय जेना अन्य जाति समूह के सोल्हकन वा रार। सधन्यवाद।
प्रवीण नारायण चौधरी-
सोल्हकन या रार सामन्ती युग के देन थिक सर। अपनेक भारतवर्ष मे बुद्धकाल आ पछाति काल मे यैह सामन्ती व्यवस्थाक आधार रहल अछि। मुगलकाल व ब्रिटिशकाल सेहो ओहि सामन्ती (बरिया) के माध्यम सँ अपन राज चलेलक। सामन्तवादक शब्द लोकतंत्र मे अवैध घोषित अछि। वर्तमान संविधान मे जातिसूचक सामन्तक प्रयोग कयल शब्द दण्डनीय अपराध थिकैक। कथी लेल घिसल-पिटल विन्दु पर आइयो जिबि रहल छी अपने समान बुद्धिजीवी?
आचार्य रामानंद मंडल –
जी त राजेतंत्र।इ ब्राह्मणवाद के अनुकूल हय।राजा विष्णु के अवतार होइ हय। जेकरा प्रजातंत्र विखंडित करय हय।आबि राजतंत्र असंभव हय।
आचार्य रामानंद मंडल –
बात त सही कहय छी। परंतु सामंती के। वोही सामंती के लेल न समाजवाद आ सामाजिक न्याय इलाज हय।
प्रवीण नारायण चौधरी –
इलाज खाली शब्द मे? आ कि व्यवहारो मे? समाजवाद त देखबे कयल जे केना अपन आ अपन सन्तान व परिजनक हित मात्र कयलक। जमीन पर ७५ वर्ष के परिणाम नहि देखि रहल छी की? आ कि बस अन्ठा रहल छी?
प्रवीण नारायण चौधरी –
समाज मे रहयवला ब्राह्मणवाद के पीड़ा केना भोगलक? किछु प्रकाश दी, हमर अध्ययन लेल। कारण समाज मे ब्राह्मणक वर्चस्वक कोनो प्रभाव हमरा जीवनकाल (५१ वर्ष) मे हम नहि देखि पेलहुँ, या फेर स्वयं ब्राह्मण होयबाक कारण हमर नजरि एहि दिश नहि गेल होयत। कृपया समझाबी हमरा।
आचार्य रामानंद मंडल –
परिवारवाद।कि राजतंत्रीय व्यवस्था परिवारवाद न हय।
वर्णवाद कि परिवारवाद न हय।
प्रवीण नारायण चौधरी –
उत्तर गोलमटोल देला सँ काज नहि चलत सर। स्पष्ट रेखांकित करू। ७५ वर्ष के ई समाजवाद आ सामाजिक न्याय के परिणाम ७०% प्रजाक लेल पलायन रोग केना देलक?
आचार्य रामानंद मंडल –
हम त ६४बा साल मे छी।
प्रवीण नारायण चौधरी –
हँ, तेँ न हम अहाँ सँ अनुभव प्राप्त करय लेल प्रकाश दियए वास्ते आग्रह कयल।
६४ वर्षक सूर्योदय देखनिहार जाहि कोनो समाज के वासिन्दा होइ, कहू जे ब्राह्मणवाद के पीड़ा समाज केँ केना पीड़ित कयलक?
आचार्य रामानंद मंडल-
उत्तर कोनो गोल मटोल न हय। ब्राह्मणवाद से कोनो ज्यादा गोल मटोल हो सकय हय।आइ पूरा समाज ब्राह्मणवाद से पीड़ित हय।आ ओकर प्रतिकार से ब्राह्मणवाद पीड़ित हय।
प्रवीण नारायण चौधरी –
ऊपर के वार्ता बेर-बेर पढ़ी। अपने केँ अपन दृष्टि कतेक फरिच्छ आ दूर धरि कतेक देखबाक सामर्थ्य विकसित भेल अछि से स्वतः पता चलि जायत। हमर शुभकामना। मिथिलावाद के अर्थ विकृत करबाक कुत्सित प्रयास लेल कोनो धन्यवाद नहि। जमीन पर भेटब, समाज के असलियत आँखिक सामने देखाकय, उदाहरण दैत अहाँ सँ बात करब। प्रणाम!
आचार्य रामानंद मंडल-
मिथिलावाद के अर्थ अंहा संकीर्ण आ कुत्सित क देलीय।हम त मिथिलावाद के आधुनिक सामाजिक सिद्धांत के देखेला रहली हय। परंतु अंहा के विचार से पता चलल कि शराब पुरनके हय शीशी नया हय। मिथिलावाद के आड़ मे अंहा मिथिलावासी से षड्यंत्र क रहल छी। हमरा बड़ा दुख हय।
प्रवीण नारायण चौधरी –
क्षमा करब। वार्ता अन्त कय देने छी। अहाँ पूर्वाग्रही आ कुन्ठित विचारधाराक लोक बुझा रहल छी। कहियो भेटियेकय समाजक विभिन्न लोक व वर्ग केँ देखाकय प्रत्यक्ष वार्ता नीक रहत।
आचार्य रामानंद मंडल –
उल्टा बात न करू।बाघ आ बकरी वाला कथा अंहा जनते होयब।हम आधुनिक विचार के छी। अंहा पुरातन विचार के। लोग अब बुधियार हय। लोग अंहु के हमरो विचार के अकांतय आ निर्णय लेतय।कोनो के झांसा मे न अतय। चाहे हम होहु आ अंहा। सधन्यवाद।