मेरे शब्द मेरी परछाई
हंसू जोर से तो वो हंस जाए,
रोऊँ तो वह रो कर गले लगाए।
करें कोई जब प्रताड़ित शब्दों से,
जोड़ के तीर शब्दों के छोड़ वो जाए।
मेरे शब्द मेरी परछाई बन जाए।
जब झूठ बोलने की बारी आए,
मुझसे लिपट संकोच घोर वो खाए।
करें मजबूत अंदर से खुद को
फिर मेरे लबों को छूकर निकल वो जाए।
मेरे शब्दों में मेरी परछाई बन जाए।
सच को हंसकर गले लगाए ,
साथी बनकर नाचे धूम मचाए।
निष्कपट निस्वार्थ हर पल सिखाए,
हाथ पकड़ कर वह मुझे राहा दिखाएं।
मेरे शब्द मेरी परछाई बन जाए।
रिश्तो में समझ की नींव रख जाएं,
हर शब्द से जीवन को सुगम बनाएं।
अनवन हो जाए जब आपस में किसी से,
उठ खड़े हो और मेरी गलती बतलाएं।
मेरे शब्द मेरी परछाई बन जाए,
मर्यादा जब भून अपनेपन की।
चौखट से आकर लकीर खीच जाए,
विवाद नहीं प्रेम हरदम सिखलाएं।
मेरे शब्द मेरी परछाई बन जाए।
मधु गुप्ता “अपराजिता”