प्रदीप छंद ,मुझको कब इंकार है।
आधार छंद– प्रदीप
विधा– गीत
परिचय – (29 मात्रा) सममात्रिक छंद
पदांत- गुरु लघु गुरु (212)
यति– 16,13
*सृजन शीर्षक- मुझको कब इनकार है (3 युग्म्
आकर मन को हल्का करती, यादें आँसू धार है।
नत नयनों से निरखूँ तुझको, मुझको कब इंकार है।
मन का कोना पुलकित होता,प्रिय की ही आवाज से।
मुख मण्डल पर निखरी आभा,नयन बसे मृदु राज से।।
भान नेह का साँसों को है, यही नेह विस्तार है।
नत नयनों से निरखूँ तुझको,मुझको कब इंकार है।।
फूलों का पाकर आलिंगन, डाल वहाँ जो झूमती।
प्रियतम के बाँहों का झूला,तन्मय होकर झूलती।।
मीठी यादों के झोंकों से ,संवादों का सार है ।
नत नयनों से निरखूँ छवि को,मुझको कब इनकार है।।
तुमसे बंधन जबसे बाँधा , लगता दिन ही रात है।
इसको समझूँ क्या मैं प्रियतम, कैसे ये जज्बात है।।
संग सहूँगी सुख दुख तेरे, तू जीवन झंकार है ।
नत नयनों से निरखूँ छवि को, मुझको कब इनकार है।।
मनोरमा जैन पाखी
7/7/2025
सोमवार