एक रोज़
एक रोज़
बारिश की कुछ बूंदे गिरीं
मैंने अधूरी सी एक कविता गढ़ी
एक रोज़ की आंधी ने
याद दिलायी वो अधूरी कविता
जो पूरी न हो पायी थी
एक रोज़ फिर से बारिश आयी
तेज़ हवाओं ने पन्नों को पलटा
बादलों की गड़गड़ाहट से
मैंने शब्द चुराये
बिजली की चमक के साथ ही
कुछ पंक्तियां कौंधीं
जिन्हें पन्ने पर उकेरा और कविता पूरी हुई
कविताएं मैं नहीं लिखता
लिखवाती हैं
‘प्रकृति और परिस्थितियां’