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6 Jul 2025 · 1 min read

*देसी ग़ज़ल*

देसी ग़ज़ल
आज के हालात पर
(प्रणय प्रभात)
◆मन की बतिया तन की बतिया, माल तलक कब आएगी?
जनता रोटी में उलझी है, दाल तलक कब आएगी??
◆कोने में मासूम खड़ी ये ताक रही है टुकर-टुकर।
नेह भरी हौली सी थपकी, गाल तलक कब आएगी??
◆मछली दाने के चक्कर में, बौराई सी भटक रही।
मछुआरा ये सोच रहा है, जाल तलक कब आएगी??
◆भूखों मार रहा है ज़ालिम, नज़र गढ़ाए ताड़ रहा।
पेट के अंदर वाली झुर्री, खाल तलक कब आएगी??
◆फ़ाकामस्ती की पस्ती से, दूर खड़ा मैं सोच रहा।
मेरी हस्ती मेरे अपने, हाल तलक कब आएगी??
◆मुझे पता है वार कड़ा है, फिर भी इंतज़ार में हूँ।
इक तलवार उठी है मुझ पे, ढाल तलक कब आएगी??
◆बड़ी बला जो सिर से पग तक, चक्कर काटा करती है।
उंगली में काले घोड़े की, नाल तलक कब आएगी??
◆हर मेहनतकश के माथे पे, मोती सी दिखने वाली।
बूंद पसीने की लीडर के, भाल तलक कब आएगी??
संपादक
न्यूज़&व्यूज (मप्र)*

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