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6 Jul 2025 · 1 min read

दिन ढला निकले सितारे शाम के

दिन ढला निकले सितारे शाम के
मुन्तज़िर हम रह गए पैगाम के

क़ासिदों की राह तकते रह गए
हम भरोसे बस सुबू के जाम के

क्या हमारा मोल है मत पूछिए
हम बिके हैं हाट में बिन दाम के

बे-ख़ुदी में मैंने जाने क्या कहा
हैं बहुत चर्चे मिरे इल्हाम के

चूम लूँ मैं गर मिले दार-ओ- रसन
बदले में मुझ पर तिरे इल्ज़ाम के

राख बन के मैं न उठ पाया कभी
क़िस्से अनका के मिरे किस काम के

बस रदीफ़ों काफ़िया ही बन सका
हम रहे शायर फ़क़त इक नाम के

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