दिन ढला निकले सितारे शाम के
दिन ढला निकले सितारे शाम के
मुन्तज़िर हम रह गए पैगाम के
क़ासिदों की राह तकते रह गए
हम भरोसे बस सुबू के जाम के
क्या हमारा मोल है मत पूछिए
हम बिके हैं हाट में बिन दाम के
बे-ख़ुदी में मैंने जाने क्या कहा
हैं बहुत चर्चे मिरे इल्हाम के
चूम लूँ मैं गर मिले दार-ओ- रसन
बदले में मुझ पर तिरे इल्ज़ाम के
राख बन के मैं न उठ पाया कभी
क़िस्से अनका के मिरे किस काम के
बस रदीफ़ों काफ़िया ही बन सका
हम रहे शायर फ़क़त इक नाम के