जरा भी लाज नहीं है, निर्लज्जों को

राह चलते चलते कभी-कभी अचानक ऐसे किसी सत्य से साक्षात्कार हो जाता है कि दिमाग एकदम शून्य हो जाता है और मन में बिल्कुल विचलन वाली स्थिति हो जाती है। ऑफिस जाने के समय रेलवे ढ़ाला बंद होने के कारण मैं अपनी बाईक पर बैठकर मोबाईल में मैसेज देखते हुए ढ़ाला खुलने का बेसब्री से इंतजार कर रहा था। तेज धूप और गर्मी की वजह से मन बेचैन था। मन ही मन रेलवे कर्मचारी को चुन चुनकर गाली भी दे रहा था। दो गाड़ी की क्रॉसिंग थी। ढ़ाला बंद होने का लगभग चालीस मिनट हो चुका था,जो उस प्रतिकूल स्थिति में एक युग के समान लग रहा था। उस मार्ग वाली सड़क पर रेंगती हुई सारी गाड़ियां एकबारगी यहाॅं पर आकर स्थिर हो गई थी। इसलिए भीड़ भी काफी बढ़ गई थी। लोग एक दूसरे से आगे निकलने के लिए योजनाबद्ध तरीके से अपनी अपनी गाड़ी खड़ी कर टकटकी भरी नजरों से आगे की ओर ऐसे देख रहे थे,जैसे सबसे अधिक जरुरी उन्हीं को है। एक गाड़ी क्राॅस कर चुकी थी और दूसरी अभी-अभी क्रॉस कर रही थी। अब निश्चित कुछ ही क्षण में ढ़ाला खुलने ही वाला था।
तभी अचानक आगे लगे टोटो पर बैठी एक निम्न मध्यवर्गीय ग्रामीण महिला,जो करीब तीस बत्तीस साल की रही होगी,दौड़ते हुए आई और मेरे बगल में आइसक्रीम बेच रहे आइसक्रीम वाले भाई साहब के आगे एक मुड़ा हुआ दस का नोट बढ़ाते हुए बोली,भैया एक आइसक्रीम मुझे और दे दीजिए। एक बुढ़ी माॅं है,जो मुझे आइसक्रीम खाते हुए टुकुर-टुकुर देख रही थी। इसलिए आइसक्रीम खाया नहीं जा रहा है। पूछने पर कुछ नहीं बोलती,बस चुपचाप गुमसुम होकर एकटक मुझे देखती है। गरीब और लाचार है,भीख मांगकर खाती है। दस रुपए की ही तो बात है। दस रुपए से कुछ होने जाने वाला नहीं है। काफी गर्मी है,खाने की इच्छा अन्दर से तो उसे भी होती होगी। जब यह बात हो ही रही थी कि उसी समय वह बूढी माॅं भी धीरे-धीरे लाठी टेकते हुए अपनी झुकी हुई कमर पर शरीर का भार डालकर उस महिला के पीछे वहाॅं पहुॅंच गई। उम्र सत्तर साल के आसपास होगी। उससे अधिक भी हो सकती थी,पर कम तो बिल्कुल नहीं।आइसक्रीम वाला बूढी माॅं को देखते हुए महिला से बोला,इनके बारे में जानते हैं आप ? इनका एक बेटा रेलवे में स्टेशन मास्टर है और सुनते हैं दूसरा भी कहीं किसी स्कूल में मास्टर है। यह सुनकर मेरी तंद्रा भंग हुई,और मोबाईल हाथ से गिरते-गिरते बचा। यह आवाज मेरे कानों में भी स्पष्ट पहुॅंच रही थी। आइसक्रीम लेने वाली उस महिला को तो मानो जैसे विद्युत का झटका लग गया। वह गुस्से में बोली,जिसकी बुढ़ी माॅं इस उम्र में यहाॅं रेलवे ढ़ाला पर भीख माॅंग रही है,तो दोनों बज्जर खसुवा बेटे को खाना कैसे धसता है। जरा भी लाज नहीं है, निर्लज्जों को। बेटे की नौकरी वाली बात बुढ़ी माॅं भी सुन ली थी। अभी जो बुढ़ी माॅं एक अनजान महिला के साथ में अपनी पसंद का आइसक्रीम लेने के लिए वहाॅं उत्साह से आई थी,अब उनका सब उत्साह एकबारगी खत्म हो गया था। आइसक्रीम वाला पढ़ा लिखा लग रहा था। डिब्बे से आइसक्रीम निकालते हुए वह महिला से बोला,ज्यादा मत सोचिए। सब कलियुग का साईड एफैक्ट है। मैं दूर से ही अपने साइड मिरर में बूढी माॅं का पूरा चेहरा देख रहा था। ऑंखें डबडबाई हुई थी और ऑंखों से लुढ़कते ऑंसू से चेहरे की झुर्रियां धीरे-धीरे गीली हो रही थी। जो बुढ़ी माॅं कुछ देर पहले काॅफी कलर वाली नहीं, गुलाबी कलर वाली आइसक्रीम माॅंगी थी,अब उसकी आवाज को जैसे लकवा मार दिया था। वह अभी आइसक्रीम लेने से एकदम मना कर रही थी। इतने में ढ़ाला खुल गया। वह महिला जबरदस्ती उसके हाथ में आइसक्रीम पकड़ा कर टोटो की ओर दौड़ी। बुढ़ी माॅं अपने हिलते हुए हाथ में आइसक्रीम पकड़े आश्चर्य से टोटो की ओर भागती हुई उस महिला को देख रही थी। मैं भी स्तंभित भारी मन से बाइक स्टार्ट कर जल्दी से ढ़ाला पार करने के लिए भीड़ में शामिल हो गया। मन में भय हो रहा था कि मानसिक असंतुलन के कारण भीड़ में गाड़ी लेकर कहीं बीच पटरी पर ही न गिर जाऊॅं या किसी आगे वाली गाड़ी को ठोकर न मार दूॅं।
पारस नाथ झा ✍️
अररिया,बिहार