जग जननी अहिं
जग जननी अहिं,जग तारिणी छी,
अहाॅं दुख हरिणी,सुख दायिनी छी,
हम कल्पित स्वर सौं कि माॅं कहु,
अहाॅं हृदय गति निरक्षिणी छी,जग जननी अहिं —–।
अहाॅं ब्रह्माणी, रुद्राणी छी,
अहाॅं चामुंडा,कौमारी क्षमा ,
हे ललिता,तारा, इंद्राणी!
अहाॅं वाराही ,जग रक्षिणी छी।जग जननी —।
निज दोष हे जननी! बांची देलौ,
स्व दण्ड मात्रिका पाबि गेलौ,
हे हृदय!विकार माय सुनु,
अहाॅं जग विकार भक्षिणी छी।जग जननी अहिं —–।
हे माय अहाॅं जुनि विमुख रहु,
अहाॅं हृदय कुंज निवास करु,
हम भरि जग सौं ठुकरायल छी,
अहाॅं हर क्षण तऽ माॅं साक्षिणी छी।जग जननी अहिं —।
हे कालि!अहिं छी माय हमर,
हम छोड़ि अहाॅं कहु जाऊ किमहर,
हम चरण शरण परल छी माॅं ‘उमा’,
अहाॅं दया दात्री दक्षिणी छी,जग जननी अहिं —-।
जग जननी अहिं जग तारिणी छी,
अहाॅं दुख हरिणी सुख दायिनी छी,
हम कल्पित स्वर सौं कि माॅं कहु,
अहाॅं हृदय गति निरक्षिणी छी।
उमा झा 🙏🏻🙏🏻