खुल के हँसो

जो आज हमारे साथ हैं शायद वो कल ना हों, क्या पता कल हम ‘खुद’ भी ना हों, इसलिये जो प्राप्त हैं वो पर्याप्त हैं, उसमें खुश रहकर जीवन जीना सीखों ।
पानें की इस भागदौड में हम बहोत कुछ खो रहें हैं, जीवन तो जीने के लिये मिला और उसे ही हम धीरे-धीरे खों रहें हैं। जिंदगी की इस भागदौड़ में पता भी नहीं चलेगा कब हम बीत जायेगें, जीवन जियाँ या ना जियाँ मगर धीरे-धीरे ओझल हों जायेंगे ।
इसलिये इस दौड़ से कुछ पल खुद के लिये निकालों, कुछ समय उन अपनों के लिये निकालों, कुछ क्षण उन पुरानें- बिछड़ों यारों के संग निकालों ।
खुल के हँसो, जीयों और मुस्कुराओं, क्योंकि ये जीवन और हम कल हो या ना हो ??