मै हूं ना ...

दुनियाँ में बहुत से रिश्तें होगें लेकिन एक ‘पिता’ का रिश्ता सबसे अलग और अद्भुत होता हैं। बहोत सारी कविताएँ, बहोत सारी किताबें, बहोत सारी बातें एक “माँ” पर हमने पढ़ी होगी सुनी होगी मगर एक “पिता” के ऊपर बहोत कम लिखा गया हैं।
पिता वो महान् शख्सियत हैं जो पूरे परिवार का बोझ पुरी जिंदगी अपने कंधों पर उठा के चलता है, अपनी औलाद की हर ‘ख्वाहिश’ पूरी करने के लिये दिन-रात अपना ‘पसीना’ बहाता हैं, हर वो कोशिश करता है ताकि उसकी औलाद को कोई ‘तकलीफ’ ना हो.. बच्चों को ब्राडेंड चीजें दिलाकर खुद फट्टे-पुराने कपड़ों में भी गुजारा कर खुश रह लेते हैं। पुरी दुनियाँ आपको स्वार्थ के हिसाब से प्रेम करेंगी मगर एक पिता का प्रेम सदैव “निस्वार्थ” ही रहेगा । सबकी खुशियाँ, जिद्द पूरी करने वाला शख्स जब ‘खुद’ की जरूरत और खुशियों की बात आती हैं तो हँसकर टाल देते हैं।
पिता वो शख्स हैं जो आपकी हर छोटी था बड़ी ‘कामयाबी’ में सबसे ज्यादा खुश होते हैं और नाकामयाबी में अपना हाथ हमारे सर पर रख देते हैं और बोलते हैं चिंता मत कर “मैं हूँ ना…. इसलिये हमेशा याद रखना जिस इंसान ने आपको बड़ा किया, बड़ा बनाया, कभी उस इंसान के सामने बड़ा बनने की कोशिश मत करना, अपने पद और प्रतिष्ठा का रौब मत दिखाना…