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साहित्य जगत के सूर्य : डॉ. रामसेबक विकल की रचनाएँ: एक समीक्षात्मक दृष्टि
परिचय :
साहित्य जगत के सूर्य डॉ. रामसेबक विकल का जन्म 1 जुलाई 1939 ई. को बलिया, उत्तरप्रदेश में हुआ था। ये कई भाषाओं के जानकार थे व उन्होंने पी एच डी तक शिक्षा प्राप्त की । इनका देहावसान मधुमेह के कारण 11 नवम्बर 2002 को छठ पूजा के दिन हुआ था।
इन्होंने भारतीय साहित्य में एक नई सृजन-धारा को जन्म दिया है, इन्होंने लेखक और पाठक के बीच की दूरी को पाटने का अद्वितीय कार्य किया है। आधुनिक युग में एक सशक्त साहित्यिक हस्ताक्षर के रूप में उभरे थे ‘डाॅ. रामसेवक विकल जी’। वे न केवल कवि थे, बल्कि कहानीकार, व्यंग्यकार, नाटककार, संपादक और संस्कृतिकर्मी भी थे । उनकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशित होती थीं । उनका साहित्य जमीनी यथार्थ, मानवीय करुणा, ग्रामीण जीवन, स्त्री-विमर्श, और व्यंग्य की धार को समेटे हुए है।
रचनात्मक विविधता और भाषा-शैली:
विकल जी की भाषा सहज, प्रांजल और प्रभावशाली है। वे क्लिष्टता से बचते हुए ऐसी शैली अपनाते हैं जो आम पाठक को न केवल आकर्षित करती है बल्कि उसके मन को छूती है।
उनकी कविताएँ सामाजिक यथार्थ और संवेदना की मिसाल हैं। वे कभी एक किसान की पीड़ा को स्वर देते हैं, तो कभी एक औरत की चुप्पी को कविता बना देते हैं। उनकी कविताएँ पाठकों के मन को मथती हैं।
कहानी कला, नाटक और कथ्य की विशेषता:
विकल जी के नाटक जीवन के रंग मंच को बखूबी उजागर करते हैं।नाकट जादूगर पाठकों को झकझोरता है और रोमांचित भी करता है ।
उनकी कहानियों में अध्यात्म है, ग्रामीण जीवन की गंध है, स्त्रियों की विवशता है, बुजुर्गों की उपेक्षा है और नवपूंजीवाद की अंधी दौड़ में पिसते इंसान की चीख है। वे पात्रों को किसी विशेष वर्ग या पेशे में नहीं बाँधते, बल्कि उन्हें यथार्थ के धरातल पर उतारते हैं जहाँ पाठक उनसे तादात्म्य स्थापित कर सके।
कविता में संवेदनाओं का स्वर:
विकल जी की कविताएँ साहित्य जगत में विशेष रूप से लोकप्रिय हैं। इनकी कविताओं में व्यक्ति और समाज के संबंधों की पड़ताल है। वे प्रेम को भी केवल भावनात्मक स्तर पर नहीं देखते, बल्कि सामाजिक संदर्भों से जोड़कर प्रस्तुत करते हैं।
वे माँ, किसान, श्रमिक, वृद्धजन, बेटी और बेरोजगार जैसे विषयों को केंद्र में रखकर कविता की संवेदना को गहराते हैं। उनकी एक विशेषता यह है कि वे कविता को वैचारिक नारे में नहीं बदलते, बल्कि उसमें मानवीय तत्व को जीवित रखते हैं।
नाटक और मंचीय प्रस्तुति:
विकल जी के नाटकों में भी उनकी सामाजिक दृष्टि स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है , डूबे हुए भाई -बहन जैसे नाटकों में संवाद सरल किन्तु मारक हैं। वे नाट्य-संवादों के माध्यम से समाज के अंदर पसरी खामोशी और विडंबनाओं को उजागर करते हैं।
प्रकाशित कृतियों में इनके नाटकों की पठन सामग्री तथा मंचन विवरण उपलब्ध हैं, जिससे नए रंगकर्मी प्रेरणा ले रहे हैं। डिजिटल मंचों पर इनके नाटकों की स्क्रिप्ट्स साझा की जाती रही हैं, जो जनचेतना के संवाद का सशक्त माध्यम बन रही हैं।
संपादन और साहित्य सेवा:
विकल जी न केवल रचनाकार हैं, बल्कि एक प्रतिबद्ध संपादक भी हैं। उन्होंने फूल और कलियां, आशा किरण, संस्कृत अनुवाद जैसी कृतियां संपादित की हैं। यह कार्य साहित्यिक लोकतंत्र की स्थापना में सहायक रहा है।
उनके साहित्य प्रकाशन की विशेषता:
विकल जी की साहित्यिक सामग्री को व्यापक पाठक वर्ग मिला है और उनकी रचनाएँ भारत ही नहीं, प्रवासी भारतीयों के मध्य भी लोकप्रिय हुई हैं। उनकी रचनाओं में टिप्पणियाँ, प्रतिक्रियाएँ और पाठकीय संवाद उनकी लोकप्रियता और प्रासंगिकता को प्रमाणित करते हैं।
निष्कर्ष:
डॉ. रामसेवक विकल जी की प्रकाशित रचनाएँ समकालीन हिंदी साहित्य की एक प्रभावशाली धारा हैं। वे केवल सृजनकर्ता नहीं, बल्कि एक संवेदनशील सामाजिक प्राणी थे । जो अपनी कलम से समाज को जागरूक करते रहे। उनका लेखन एक पक्षधर लेखन है – जो अन्याय, शोषण और असमानता के विरुद्ध खड़ा दिखाई देता है।
क्योंकि उनमें एक कलम का सिपाही छिपा था, ऐसे महापुरुष में प्रतिबद्धता और साहित्यिक गरिमा छिपी होती है।
इसलिए यह कहा जा सकता है विकल जी का लेखन आज के दौर की चेतना का साहित्य है – एक ऐसा साहित्य जो पढ़ा ही नहीं जाता, बल्कि महसूस किया जाता है।
उनके जाने के बाद उनकी कृतियां –
भोजपुरी गीता, आखर प्रकाशित हुई हैं, यह कार्य बड़ा ही सराहनीय है।
– मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
ग्राम रिहावली, डाक घर तारौली गूजर, फतेहाबाद, आगरा, उत्तर प्रदेश 283111
9627912535