ग़ज़ल

मैं वैसे का वैसा हूं तुम आना मत
बिलकुल पहले जैसा हूं तुम आना मत
प्यार नाम का तुमको कोई खाना दे
उसमें ज़हर भी हो सकता है खाना मत
बातें गर मेरी सच्ची हैं बदलूं क्यों
पैंट पजामें के फ़र्कों पर जाना मत
पूंछ-प्रतिष्ठा दरवाज़े पर देना छोड़
वरना तुमको चेताता हूं आना मत
बड़़े ये रिश्ते मुझको सूट नहीं करते
इंसां रहना, बन जाना तुम नाना मत
आपकी फ़रमाइश पे ग़ज़लें कहता हूं
वरना घटिया अदब की याद दिलाना मत
बात तुम्हारे पास कोई हो मतलब की
सीधे बतला दो तुम गाना गाना मत
-संजय ग्रोवर