बुद्ध
लाख वर्तमान की उपासना करो
अतीत किसी न किसी रूप में
मुस्कुराता , मुंह चिढ़ाता
प्रकट हो ही जाता है।
खोखला हो जाता है ,
बुद्ध का क्षणिक मत।
खंडित हो जाती है
राम की मूर्ति।
कमजोर होने लगता है
महादेव का उद्घोष।
फीके पड़ने लगते हैं,
साहित्य के सारे निचोड़।
बस पटल पर अंकित ,
भूतकाल की त्याज
सीता , उर्मिला , अहिल्या
यशोधरा , और हर एक स्त्री
जो छली गई हो
प्रेम के मृग से।
#निवेदिता रश्मि