लाठी

लाठी ले ना लट्ठ बन, तब लठिया गुण खान।
मूढ़ बने तो द्वेष बन, लेती है वह प्राण।।
लेती है वह प्राण, बन गए तुम अपराधी।
निज गर्दन को फाॅंस, बुला ली भ्रम की ऑंधी।।
नायक कह ऋषि क्रौंच ज्ञान की गह परिपाटी।
बनो जागरण-दीप चेत बिन नर मद-लाठी।।
👉 “क्रौंच सु ऋषि आलोक” खंड काव्य /शोधपरक ग्रंथ की कुंडलिया। पृष्ठ संख्या 22
👉 क्रौंच सु ऋषि आलोक शोधपरक ग्रंथ/खंड काव्य का द्वितीय संस्करण अमेज़न और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है।
आचार्य पं बृजेश कुमार नायक
भारत गौरव
हिंदी सागर
प्रेम सागर
विद्यासागर
विद्या वाचस्पति
👉 पं बृजेश कुमार नायक, विश्व प्रसिद्ध योगी और आध्यात्मिक संस्था इंटरनैशनल आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक सद्गुरु श्री श्री रविशंकर के शिष्य हैं।