दोहा

दोहा
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चपला की चमचम चमक, नाच रहे हैं मोर।
गरज रहे घन आज हैं, शब्द करें घनघोर।।
शीतल मन्द सुगन्ध है, बहती ‘राज’ समीर।
पुरवइया है चल रही, बढ़ा देत तन पीर।।
~राजकुमार पाल (राज) ✍🏻
(स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित)