*नवनिधि क्षणिकाएँ---*
नवनिधि क्षणिकाएँ—
28/06/2025
कोई नहीं सुनता है मेरी
अनदेखा किया जा रहा हूँ
कोई प्रतिक्रिया नहीं होती
इतनी शिकायत के बाद भी।
वो हमसे शिकायत करते हैं
हम उनसे शिकायत हैं करते
जो भी देखते हैं हम दोनों को
शिकायत कहकर बुलाते हैं।
शिकायत जीवन से बहुत हैं,
दूर करूँ ऐसा मार्ग नहीं।
पुस्तक होती तो फाड़ देता,
जो पसंद नहीं है पृष्ठ
पहले असर होता था बहुत
बेताबियाँ कुछ ज्यादा ही थी
अब तो ऐसा लगता है
सिर्फ़ शिकायतें ही बाकी हैं।
असली और नकली
दोनों ही होते हैं
ये देखना होता है कि
उनके मिजाज कैसे हैं।
बहुत सियासत होती है
जब हम शिकायत करते
वो मसीहा बनकर वहाँ पर
चुपके से निकल जाते हैं।
कौन किससे शिकायत करे यहाँ
किसको है इतनी फुर्सत
परेशानियों ने जिंदगी को
नीरस बना डाला है दोस्त।
मैं ऐसा क्यों हूँ?
तुमको शिकायत है
मेरे जैसे तुम नहीं
ये अब मेरी शिकायत सुन।
शिकायत की पर्ची अब भी जेब पर है,
मैं देख रहा हूँ आज सुबह से ही
वो मुझको देखकर मुस्कुराने लगा है।
— डॉ. रामनाथ साहू “ननकी”
संस्थापक, छंदाचार्य, (बिलासा छंद महालय, छत्तीसगढ़)
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