छोटी अंगुली
!! छोटी उंगली !!
यह कहानी उसे छोटी सी बच्ची की है जिसकी मुलाकात एक दिन ट्रेन में सफर करते हुए। सामने वाली सीट पर बैठी थी। उसने उसके बगल वाली आंटी को अपनी बेटी को प्यार करते देखा और आंखों में आंसू भर दिया। उसे बच्ची से पूछा क्या हुआ उसने कुछ जवाब नहीं दिया। बालिका का अपने किसी रिश्तेदार के साथ जा रही थी। उसकी निगाहें बार-बार उसे बैठी महिला पर पड़ रही थी। बहुत बार उसका मन कह रहा था कि कुछ बोलु पर, वह नहीं बोल पा रही थी। शाम ढलने वाली थी सफर भी दूर का था। मैंने उसे अपने पास बुलाया और उससे बातें करने लगी। उसकी तोतली भाषा ने मेरा मन मोह लिया। वह मेरे साथ खेलने लगे और अच्छी बातें सुनाने लगी। उसके साथ जो महिला थी वह बुजुर्ग थी। वह अपनी सीट पर सो गई लेकिन इस बच्ची को नींद नहीं आ रही थी। उसे अच्छा लगने लगा।। और ढलती शाम के नजारे देखने लगे। मैंने बात करते-करते पूछा तुम्हारी मां का क्या नाम है। उसने मुझे चुप कर दिया और रोने लगी। मैंने उसे चुप करके कुछ खाने को दिया और एक कहानी सुनाने लगी _उसने तुरंत जवाब दिया की कहानी मत सुनाओ मेरी मां की याद आती है। मैंने पूछा कहां है तुम्हारी मां और पिताजी यह कौन है, जिनके साथ तुम जा रही हो।
उसने सारी बातें बताई मेरा नाम साक्षी है और मेरी मां नहीं है।मेरी मां भगवान के पास चली गई।। कोरबा उदास हो गई और आंखों में आंसू भर आए। फिर मैंने पूछा पिताजी कहां है साक्षी ने बोला मेरे पिताजी दूसरी मम्मी ले आए।
एक दिन पिताजी मुझे उंगली पड़कर पार्क घूमने ले जा रहे थे तभी उन्होंने मुझसे पूछा क्या मम्मी की याद आती है मैंने कहां हां_लेकिन साक्षी को क्या पता था कि पिताजी दूसरी मां लाने की बात कर रहे हैं। अभी मन को गए 6 मा ही हुए थे और पिताजी ने शादी कर ली।
साक्षी ने घर में दूसरी औरत को देखते पूछा पिताजी यह कौन है। बेटा तेरी नई मां है। साक्षी ने कहा नहीं यह मेरी मां नहीं है आपने तो कहा था कि जो भगवान के घर जाते हैं वह वापस नहीं आते हैं। और साक्षी फिर रोने लगी। पिताजी ने उसे बहुत समझाया पर उसके कोमल मन को कौन समझाए समय बीतता गया और पिताजी का स्नेह है धीरे-धीरे कम होने लगा। साक्षी पर भी नई मां का ध्यान नहीं रहता। साक्षी बड़ी होने लगी आप जिम्मेदारी और बढ़ने लगी। साक्षी के पिता ने सोचा क्यों ना साक्षी को हॉस्टल में शिफ्ट कर दिया जाए और साक्षी को हॉस्टल भेज दिया। जो बचपन माता-पिता की गोद में पाने वाला था उसे दूर हॉस्टल भेज दिया।
कुछ दिन बाद ही अचानक साक्षी के पिता की हार्ट अटैक से मौत हो गई और साक्षी घर वापस आ गई। नई मां का व्यवहार साक्षी के प्रति बदलने लगा। कभी-कभी गुस्से में मां उसे कोसने लगते कभी अप शब्दों का प्रयोग करती। साक्षी के पिता एक शिक्षक के पद पर कार्यरत थे। साक्षी की मां ने साक्षी के पिता के जाने के बाद साक्षी को घर से बेदखल कर दिया। आप साक्षी कहां जाती उसकी हालत देखकर साक्षी के एक दूर के रिश्तेदार ने साक्षी को अपने साथ घर ले आए। साक्षी अपनी बात सुनते सुनते उसे कब नींद आ गई पता नहीं चला
समय बिता चला गया और साक्षी लगभग 25 वर्ष बाद अचानक एक बड़े कॉन्फ्रेंस में अचानक मुलाकात हो गई। साक्षी को देखकर वह सारी कहानी याद आ गई लेकिन आप साक्षी बहुत कुछ बदल चुकी थी। दोनों आपस में मिले गले लगाया और पूछा अब कैसी है। साक्षी ने कहा मेरी शादी हो गई मेरी दो बच्चे हैं और आप में भी नौकरी करती हूं। आपसे मिलने के बाद मैंने एक छोटी सी नौकरी करने लगी और अपनी पढ़ाई पूरी की इस प्रकार मैंने अपने खर्चे पर अपना जीवन यापन किया। धीरे-धीरे मेरी सारी मुसीबत काम हो गई और मेरे जीवन में सुख के दिन आ गए। घर से आने के बाद मेरी नई माने कभी मुझे याद नहीं किया और ना ही मुझे प्रॉपर्टी में से कोई हिस्सा दिया।मैंने अपनी हिम्मत और लगन के साथ सब कुछ पा लिया लेकिन वह गीत आज भी याद आता है~~~”अंगुली पकड़ कर चलना सिखाया”
“पापा ओ मेरी प्यारे पापा ”
मां और पिताजी को कभी नहीं भूल पाई उनकी की है जिन्हें अपने मां आज आती हैं और आंखें नम हो जाती है।
यह कहानी उस बालिका साक्षी की नहीं बोल कि उन प्यार मासूम अनाथ बच्चों की है जिन्हें अपने मां बाप का प्यार नहीं मिलता और सब कुछ होते हुए भी अनाथ हो जाते हैं।
डॉ मनोरमा चौहान
हरदा(मध्य प्रदेश)