Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
25 Jun 2025 · 1 min read

"मन्नत और माया"

“मन्नत और माया”

आजकल कुछ लोग बड़े अजीब हो गए हैं,
मन्नत पूरी न हो तो भगवान ही बदल लेते हैं।
कल तक जो चरणों में थे, आरती के दीप जलाते थे,
आज वही नई मूर्तियों में श्रद्धा जताते हैं।

इंसान की वफ़ा की क्या उम्मीद करें उनसे,
जो आराध्य बदलते हैं बस स्वार्थ के हिसाब से।
मंदिर की दीवारें भी शर्मिंदा हैं आजकल,
जहाँ भक्ति कम, सौदा ज़्यादा होता है हर पल।

कभी पत्थर को पूजा, कभी पेड़ को पूज लिया,
जैसे खुदा भी अब बोली में बिकने लगा।
कहीं व्रत अधूरा रह गया तो दोष भगवान को,
न खुद को देखा, न मन के झूठे अभिमान को।

पर याद रखो, परमात्मा बदलता नहीं,
वो तो बस हर रूप में एक ही सत्य में बसता है कहीं।
भक्ति हो सच्ची, तो राह अपने आप मिलती है,
वरना दुनिया तो छल में ही उलझी मिलती है।

मुकेश शर्मा विदिशा

Loading...