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24 Jun 2025 · 1 min read

बचपन में फिर झांक रहा हूं

क्यों मैं अपने बचपन में
फिर झांक रहा हूं ।
क्या खोया क्या पाया
इसको आंक रहा हूं।
घर खोया, आंगन भी खोया
खोई गलियां प्यारी
खोये साथी खेल खिलौने
खोई बाते न्यारी
खोके सोना सूखी मिट्टी फांक रहा हूं
क्या खोया क्या पाया
इसको आंक रहा हूं।
मुझको चाहने वाले
चेहरे छूट गए है|
जो थे पास दिलों के
वो भी रूठ गए है|
नम आँखों से लुटे चमन को
माप रहा हूं |
क्या खोया क्या पाया
इसको आंक रहा हूं।
क्यों मैं अपने बचपन में
फिर झांक रहा हूं ।
क्या खोया क्या पाया
इसको आंक रहा हूं।

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