सदा रहो गतिमान
सरसी छंद
16-11
पदांत गुरु लघु
सृजन शीर्षक-सदा रहो गतिमान
सूरज चंदा तारे जैसे, सदा रहो गतिमान।
नील गगन में उड़ते पाखी,वैसी भरो उड़ान।।
1-अंतरा
छंद बहे सरिता से अंतस, बनते शब्द सुहाग।
ऐसे ही गूँजे जीवन में, राग भरा अनुराग।।
सदा अक्ष पर घूमे धरती,रख कर अपना मान
नील गगन में उड़ते पाखी,वैसी भरो उड़ान।।
2-अंतरा
वाणी की वीणा से झंकृत, छूते स्वर आकाश।
प्राण-पटल पर अनहद गुंजित,देता नव आभास।।
नित्य नवल घट रचे प्रकृति ने,करती कब अभिमान
नील गगन में उड़ते पाखी,वैसी भरो उड़ान
3-अंतरा
शेष बचा है जीवन कितना,हो जाओ निष्काम।
सत्य -झूठ भुजपाश बने क्यों, उनका है क्या काम।।
फूल बिछे या शूल उगे हों,रहना तू गतिमान
नील गगन में उड़ते पाखी,वैसी भरो उड़ान।।
मनोरमा जैन पाखी