"सावन"
मौसम ने फिर ली अंगड़ाई
देखो सावन की घड़ी आई ।
देखो घनघोर घटा छाई हैं
संग अपने वर्षा लाई हैं ।
मोर जोर से गीत हैं गाता
कलरव कर सावन बुलाता ।
देख मेघ किसान मुसकाया
हल लेकर खेत में आया ।
बैलों ने भी जोर लगाया
मिट्टी को इधर उधर उलटाया ।
पक्षी भी फिर चले नीड को
बाजार खाली छोड़ भीड़ को ।
भरी दोपहरी शाम सी लागे
सूरज छुपा तो बल्ब भी जागे ।
हवा ने भी ताकत दिखलाई
खिड़कियाँ खड़ – खड़ चिल्लाई ।
लू ,शीतल पवन हो गई
ऐ सी गहरी नींद सो गई ।
नीला आसमान काला हो गया
बेहद कम उजाला हो गया ।
छाते, रेनकोट निकले काम को
पकौड़ी की योजना बनी शाम को।
पहली बूंदे टप टप नीचे आई
मिट्टी की खुशबू चारों ओर छाई ।
बादल ने गड़ – गड़ शोर मचाया
बिजली ने कड़ – कड़ रौब जमाया।
फिर मूसलाधार बरसा पानी
नदी नाले भी हुए तूफानी ।
बच्चे बूढ़े सब बाहर आए
बारिश में सब खूब नहाए ।
भैंसों ने जल में डुबकी लगाई
सबने तपिश से राहत पाई ।
भरे तालाब और पोखर सारे
खेत पगडंडी पर लगी कतारें ।
चारों ओर हरियाली छाई
मानो धोरों पर हुई रंगाई।
खेतों में फिर बीज फूटे
कई मेड़े और बांध भी टूटे ।
खेतों में फसलें लहराई
यह सब देख प्रकृति मुस्काई।
देखो सावन की घड़ी आई ||
” एकांत “