ऐ चांद तुझमें तो दाग
ऐ चांद तुझमें तो दाग ,
फिर भी तू शीतलता की खान ,
मैं वेदाग हुआ तो क्या हुआ ,
मुझमें तो भरा पड़ा है बहुत आग ,
ऐ चांद तुझमें तो दाग ,
चमक रहा तूं नभ में देखों ,
लेकर तारों की बारात ,
धरा पे भटक रहा नितांत अकेला ,
देखों अपनों के बीच फंसा ,
मैं निराला महान इंसान ,
ऐ चांद तुझमें तो दाग ,
फिर भी तू शीतलता की खान ,
है नहीं तेरे पास कुछ भी अपना ,
फिर भी कहां है तुझे गिला शिकवा ग्लानि ,
रात रागनी भी करें नमन तुमको ,
अपनी शीतलता से करता उसे तूं निहाल ,
होती धरा पुल्कित तुझसे ,
अमन चैन से सोते उसके सब लाल ,
कुछ जो उससे भटके थे ,
लेकर अपनी महत्त्वाकांक्षा की बारात ,
तेरी आद्रता पा सब लौटें उसके पास ,
ऐ चांद तुझमें तो दाग ,
मैं वेदाग हुआ तो क्या हुआ ,
मेरे पास तो सबकुछ अपना ,
घर वंश शोहरत मान सम्मान ,
फिर भी सब छोड़ चले ,
जिसपर था मुझको नाज ,
ऐ चांद तुझमें तो दाग ,
बदलें ऋतु हो चाहे जो भी ,
शीतल चांदनी ही हरदम ,
तेरे दामन से पा हो जाते सब निहाल ,
मैं वेदाग हुआ तो क्या हुआ ,
मेरे पल-पल बदलते सोच विचार ,
ऐ चांद तुझमें तो दाग ,
फिर भी तू शीतलता की खान ,
मैं वेदाग हुआ तो क्या हुआ ,
मुझमें तो भरा पड़ा है बहुत आग ।
____संजय निराला