Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
10 Aug 2025 · 1 min read

ऐ चांद तुझमें तो दाग

ऐ चांद तुझमें तो दाग ,

फिर भी तू शीतलता की खान ,

मैं वेदाग हुआ तो क्या हुआ ,

मुझमें तो भरा पड़ा है बहुत आग ,

ऐ चांद तुझमें तो दाग ,

चमक रहा तूं नभ में देखों ,

लेकर तारों की बारात ,

धरा पे भटक रहा नितांत अकेला ,

देखों अपनों के बीच फंसा ,

मैं निराला महान इंसान ,

ऐ चांद तुझमें तो दाग ,

फिर भी तू शीतलता की खान ,

है नहीं तेरे पास कुछ भी अपना ,

फिर भी कहां है तुझे गिला शिकवा ग्लानि ,

रात रागनी भी करें नमन तुमको ,

अपनी शीतलता से करता उसे तूं निहाल ,

होती धरा पुल्कित तुझसे ,

अमन चैन से सोते उसके सब लाल ,

कुछ जो उससे भटके थे ,

लेकर अपनी महत्त्वाकांक्षा की बारात ,

तेरी आद्रता पा सब लौटें उसके पास ,

ऐ चांद तुझमें तो दाग ,

मैं वेदाग हुआ तो क्या हुआ ,

मेरे पास तो सबकुछ अपना ,

घर वंश शोहरत मान सम्मान ,

फिर भी सब छोड़ चले ,

जिसपर था मुझको नाज ,

ऐ चांद तुझमें तो दाग ,

बदलें ऋतु हो चाहे जो भी ,

शीतल चांदनी ही हरदम ,

तेरे दामन से पा हो जाते सब निहाल ,

मैं वेदाग हुआ तो क्या हुआ ,

मेरे पल-पल बदलते सोच विचार ,

ऐ चांद तुझमें तो दाग ,

फिर भी तू शीतलता की खान ,

मैं वेदाग हुआ तो क्या हुआ ,

मुझमें तो भरा पड़ा है बहुत आग ।
____संजय निराला

Loading...