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21 Jun 2025 · 1 min read

सॉनेट

घन सम यदि तुम साथ निभाते
मैं पानी सम चंचल होती।
तुम आकर मम अंग समाते,
मैं चंचल बन अंचल धोती।

तुम होते गर सुप्त सिन्धु से,
मैं दरिया बन आन समाती।
तुम होते गर मेघ इन्दु से,
मैं तुम सँग उत्पात मचाती।

विपरीतता अगर आजाती
हम दोनों के ह्रदय भवन में।
फिर दोनों की मति चकराती
जल जाती उर प्रीतिअगन में।

हो जाता सम्पूर्ण निवारण।
उठ जाता जब मोह आवरण।
पाखी

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