हरियरी
कहल गईल बाऽ की परिवर्तन ही संसार के नियम बाऽ। समय-समय पर हर परिस्थिति में बदलाव भईल बाऽ। आ इहे बदलाव से समाज के रीति रिवाज में भी बदलाव देखे के मिलेला।
एगो का जमाना रहें कि जईसे ही जेठ – आषाढ़ के महीना आवें अउरी आम, कटहल जईसन फल जब पाके लागे तऽ लईकी के ससुरा से ओकर माइके में ‘हरियरी’ आवें। ई हरियरी टांगा पर आवें तऽ गांव के लोग देखते ही समझ जाएं अउरी अंदाजा लगा लेवे की ई हरियरी केकरा घरे जाता। लोग आपस में बतियावें लागे कि देखऽना फलना के बेटिया के हरियरी आईल हऽ।
ए हरियरी में हरियर – हरियर फल आवें, जवना के चलते एकर नाम ‘हरियरी’ पड़ गईल। जेमे आम, कटहल, लीची जईसन फल आवें। ए हरियरी के फल के पूरा पटदारी (गोतिया), पड़ोसिया अउरी गांव में बटाएं। उ समय में ई एगो रीति रिवाज के बड़ी हिस्सा रहे। कवनों भी जाति, समाज, धर्म के लोग रहे सब में हरियरी लईका के घर से लईकी के घरे जाएं लेकिन अब ई एबरा के जमाना में भुला गईल बाऽ।
दरअसल हरियरी आवें – जाएं के कारन ई रहे कि जब लईका – लईकी के बियाह होके तऽ लईका के संगे लईकी के बिदाई ना होखे, जवना के चलते लईकी के पाच साल के गवना रखाएं। मतलब की बियाह भईला के पाच साल के बाद लईकी के बिदागरी होखे तब लईकी अपना ससुराल जाएं। एही पाच साल के बीच में चार बार हरियरी लईकी के घरे जाएं। धीरे-धीरे एमे बदलाव होखे लागल अउरी पाच साल वाला गवना अब अढ़ाई बरस हो गईल। फेरु ई अढ़ाई के जगह एक साल के हो गईल, जवना के ‘वर्ष भितरे गवना’ के नाम से जानल गईल।
आजकल के लईका – लईकी लोग के ई तऽ मालुमे ना होई कि हरियरी का कहाला?
हरियरी जईसन रीति रिवाज खतम होखे के कारन ई रहल की अब बियाह के संगही लईकी के बिदागरी हो जाता, जवना के चलते ना लईकी शादी भईला के बाद अपना माइके रहतारऽलो आ ना हरियरी जाता।
सच में कहल जाव तऽ देखी अपने आप हरियरी जईसन पराम्परागत रीति रिवाज समाप्त हो गईल। एमे ना कवनों बरहामन के हाथ रहल, ना कवनों समाज के ठीकदार के।
एक तरह से कहल जाव तऽ एक साथे कईगों रिवाज समाप्त हो गईल। जेमे ‘पंच वर्षी गवना, अढ़ाई वर्षी गवना, वर्ष भीतरे गवना’ के साथ हरियरी जईसन रीति रिवाज लेकिन एगो जमाना रहें कि एही ‘गवना’ के नाम पर केतना फिलीम, गाना, एल्बम फिलमावल गईल, जेमे – गवनवां लेजा राजा जी, गवनवां के साड़ी आदि जईसन फिलीम अब सब इतिहास बन के रह गईल।
कुल मिलाके कहल जाव तऽ ‘हरियरी’ वाला रीत समाप्त हो गईल ‘गवना’ वाला रिवाज विलुप्त भईला से। एह तरह से ई समझल जा सकऽता की समय – समय पर केतना रीति रिवाज बनत गईल बाऽ अउरी केतना समाप्त होत गईल बाऽ अउरी अईसही आवत – जात रही।
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@जय लगन कुमार हैप्पी
बेतिया, बिहार।