माँ बाप
……….. माँ बाप……….
औलादें बढ़ती हैं पिता माता के धर्म से
मिलती है सफलता अपने किये कर्म से
सूत्र यही एक है अखिल विश्व के लिए
खड़े हैं दीप लिये माता पिता भविष्य के लिए
औरों के सामने धरते हैं चरण बड़ी शान से
अकेले में पुकारते हैं उन्हें ही शब्द बाण से
लिखते हैं पिता को जैसे आकाश की छाया
माता के कदमों में ही जन्नत को है पाया
चंदन की माला भी भरी रहती है धूल से
रहती बाती बुझी सजावट काग़ज के फूल से
श्राद्ध में भी फुरसत नहीं है तर्पण के कर्म की
होती है बातें समाज में पिता के धर्म की
हो पिता स्वयं, कहते बाप ने मेरे किया क्या
खाये पिये खर्च किये, जाते भी दिया क्या
हाल यही आज के विकसित समाज का
दिखावे का ही बन गया है माहौल आज का
माँ बाप ही आज आँख की किरकिरी बन गए
संभाले थे फूल जैसे, आज सिरफिरे बन गये
आता है वक्त लौटकर भी, औलादों सुन लो
जगह दो हृदय में उन्हें, आँखों से चुन लो
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डॉ. मोहन तिवारी, मुंबई