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17 Jun 2025 · 1 min read

।। मोर घर माटी के ।।

।। मोर घर माटी के ।।

मोर घर माटी के सुग्घर सुग्घर हे,
चिरिया मन के गीत ह , सियान ल सुहाए
दुवार-भीतरी म सुगंध माटी के, नान्हे कोंच के नाचा मोर
हर बेरा गुजरे मोर, सांझ बिहान के

कारिया माटी ह सुग्घर, बाढ़-बाढ़ म रंग बिरंगी
खेत-बाड़ी, बाँस के रुंधना, माटी के लाज हावे साफ
पीपल के छाँव, म काकी के गीत
लइका-तोर संग खेलबो कहे, सुग्घर माटी म

राजा रानी के कहानी बिक्कठ, रात में सुने शब्बो सुग्घर ,
रायपुर-धमतरी के भाखा, गांव म बसे हे
हमर घर, हमर बोली, हमर कलेजा बसे हे माटी म
तारा चंदा ल देखे संग, लोर-लोर जोड़य जीतू

माटी म बसाए दाई ददा के बाढे–पीरा आऊ मेहनत
मोर घर माटी के सुग्घर सुग्घर हे जीतू।।

✍️📝 जितेश भारती

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