।। मोर घर माटी के ।।
।। मोर घर माटी के ।।
मोर घर माटी के सुग्घर सुग्घर हे,
चिरिया मन के गीत ह , सियान ल सुहाए
दुवार-भीतरी म सुगंध माटी के, नान्हे कोंच के नाचा मोर
हर बेरा गुजरे मोर, सांझ बिहान के
कारिया माटी ह सुग्घर, बाढ़-बाढ़ म रंग बिरंगी
खेत-बाड़ी, बाँस के रुंधना, माटी के लाज हावे साफ
पीपल के छाँव, म काकी के गीत
लइका-तोर संग खेलबो कहे, सुग्घर माटी म
राजा रानी के कहानी बिक्कठ, रात में सुने शब्बो सुग्घर ,
रायपुर-धमतरी के भाखा, गांव म बसे हे
हमर घर, हमर बोली, हमर कलेजा बसे हे माटी म
तारा चंदा ल देखे संग, लोर-लोर जोड़य जीतू
माटी म बसाए दाई ददा के बाढे–पीरा आऊ मेहनत
मोर घर माटी के सुग्घर सुग्घर हे जीतू।।
✍️📝 जितेश भारती