पिता
पिता
पिता ,पिता होना कभी नहीं भूलता ,
बस हम ही हैं जो पिता को भूल बैठे हैं।
एक लंबा सफर तय करते हैं खामोशी से
अपने फर्ज दायित्व जिम्मेदारी में लिप्त
क्यों कि
वह पिता है ,यह बात कभी नहीं भूलता।
आसान है क्या पिता होना?
तमाम परेशानियों के बीच
चेहरे पर मुस्कान.सजाये
उलझनों कोसुलझाते चले जाना।
बड़ी होती बेटी की चिंता,
बेटै के भविष्य को सँवारने
का दायित्व,
कितने सामाजिक दबाव
और उसके बीच स्वयं
को पिता के रूप में
बरगद सा डट के खड़े होना देखना !!
आसान नहीं, बिल्कुल भी
पर फिर भी वह पिता है।
पाखी