ये दिल तो गुम है
ये दिल तो गुम है किसी के प्यार में ।
मरने वाले हो गये हम दिन चार में।
जाने वो कब उठाये रुख़ से नक़ाब
आंखें मसरूफ़ हैं इसके इंतज़ार में ।
वो बार-बार पलकें गिरा कर उठाए
क्या ये इकरार है उनके इनकार में।
खुली जुल्फें जब , घटाएं छाने लगी
बहके मन ऐसे मौसम खुशगवार में ।
नज़र ऐ कर्म करो थोड़ा नाचीज़ पर
कब से खड़े हैं हम तेरे तलबगार में।
सुरिंदर कौर