मुझको मेरे किस्से में, मेरा किरदार नहीं मिलता।
मुझको मेरे किस्से में, मेरा किरदार नहीं मिलता।
बँटे हुए अपने ही जीवन पर, अधिकार नहीं मिलता।
दफ्तर का हर दिन कटता है, शनिवार की चाहत में।
मुझको मेरे हिस्से का, पूरा रविवार नहीं मिलता।।
अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’