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6 Jul 2016 · 1 min read

छंद

कुंडलिनी
मानस के हो बिंब तुम, कहाँ छुपाऊँ प्यार।
हृदय रखा है सामने , कर लो तुम स्वीकार।
कर लो तुम स्वीकार, बने मन मेरा पावस।
प्रेमांकुर के पुष्प, करें शुचि सुरभित मानस।
अंकित शर्मा’ इषुप्रिय’
रामपुर कलाँ,सबलगढ(म.प्र.)

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