जीवन जलता ताप से,
जीवन जलता ताप से, खोजे तरुवर छांव।
राग -द्वेष को भूल जन, खड़े एक ही ठाँव।।
खड़े एक ही ठाँव, पसीना तन से बहता।
लगती दिन भर प्यास, न खाने को मन कहता।।
कहें प्रेम कविराय, थके हारे सारे जन।
पानी शीतल छाँव, चाहता है यह जीवन।।
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव प्रेम