बाल कविता
चालाक बिल्ली
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डाल रखी थी उसने माला,
पहन रखी सुन्दर मृगछाला।
बिल्ली चूहौं के ढ़िग आई,
बोली सुन लो मेरे भाई।
डरो नहीं आ जाओ आप,
छोड़ दिए हैं सारे पाप।
अभी हिमालय को जाऊॅंगी।
वहीं तपस्या कर पाऊॅंगी।।
चूहे थे वे भोले भाले,
मन के सच्चे तन के काले।
पूड़ी सब्जी खीर खिलाई,
दस-दस रुपया भेंट चढ़ाई।।
बिल्ली थी वह बड़ी सयानी,
लगी बताने बात पुरानी।
लगी दिखाने वह चतुराई,
सब वेदों की कथा सुनाई।।
हम सबका संताप मिटाओ,
कृपा करो और शिष्य बनाओ।
बिल्ली मन ही मन हर्षाई,
पकड़ चार को दौड़ लगाई।।
~राजकुमार पाल (राज) ✍🏻
(स्वरचित सर्वाधिकार सुरक्षित)