घोर कलयुग , या बदला
पहले बेटियाँ मरती थी , अब बेटे मर रहे हैं ,
कौन ज्ञान देता इनको ,जो अब ये कर रहे हैं ,
शर्म हया बेच खाई है , किसको कहें ग़लत,
संस्कार की चिता जली ,क्यों नहीं डर रहे हैं।
आँधी तूफ़ानों ने घेरा , लज्जा छूट गयी पीछे,
आँखों में आँसू आकर , ख़ुद ही झर रहे हैं।
✍️नील रूहानी