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11 Jun 2025 · 1 min read

प्रकृति की करुण पुकार

अतिशय गर्मी देख कर,करती प्रकृति पुकार।
रोको मानव कृत्य कटु,तजकर अर्थ विचार।।

अतिशय चाहत नव भवन,अतिशय चाहत अर्थ।
वन उपवन काटें सदा,कृत्य बहुत यह व्यर्थ।।

अतिशय वृक्ष कटान से,बिगड़ा सारा साज।
शीतलता सीमित हुई,गर्मी छाई आज।।

अहम भाव मानव रखे,कर में है विज्ञान।
इसी वहम में पड़ सदा,करे प्रकृति अपमान।।

प्रकृति विरोधी कृत्य कर,बनता बहुत महान।
संकट इससे बढ़ रहा,देता कम ही ध्यान।।

प्रकृति प्रेम की भावना,हुई बहुत ही अल्प।
गमलों में बस यह दिखे,बदला आज विकल्प।।

प्रकृति प्रेम के पंथ पर,चलते सत जो लोग।
वृक्ष लगाते खूब ही,जैसे बनता योग।।

डॉ ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम

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