प्रकृति वसुधा का शृंगार

प्रकृति हमारी मातु है,वसुधा का शृंगार।
इसकी रक्षा हम करें,यह जीवन आधार।
हरी भरी वसुधा सदा,शोभित रखती साज।
रोगों को कर दूर यह,करे जगत उपकार।।
प्राण वायु दाता यही,रखे जगत यह ध्यान।
इससे जीवन बेल है,यही सृष्टि का सार।।
प्रकृति विरोधी कृत्य सब,देते केवल अर्थ।
प्रकृति कोप जब अति बढ़े,रोए सब संसार।।
प्रकृति प्रेम नित घट रहा,बढ़ा अहम विज्ञान।
नवल रोग का मूल यह, करें सभी स्वीकार।।
ए सी कूलर फ्रिज सदा,दूषित करते वायु।
ठंडक देकर तुच्छ सी,करते जग बेकार ।।
आज जरूरत आ पड़ी,समझें हम सब मर्म।
प्रकृति बचाने के लिए,करें उचित व्यवहार।।
प्रकृति प्रेम का भाव भर,करे जगत आह्वान।
रक्षित करिए यह प्रकृति,करता ओम पुकार।।
डॉ ओम प्रकाश श्रीवास्तव ओम