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10 Jun 2025 · 1 min read

सवाल कल भी था सवाल आज भी है और

सवाल कल भी था सवाल आज भी है और
हम सभी कहीं न कहीं सोचने को मजबूर हैं
मन व्यथित है.. 🖋️
🙏🏻🙏🏻

किस दीये में तेल अब
किस दीये में बाती है
लौ दीये की बुझ गई
धुआँ उठना बाकी है…

अनजान सी पीड़ा कहीं से
जब आकर दस्तक देती है
हर एक पल बनकर कहानी
कुछ दास्तां अपनी कहती है …

चिराग बुझा है उस घर का
अब न दीया और बाती है
संताप भी है शोर करता
अब क्या कहना बाकी है..

व्यथित हृदय अब कर रहा
जाने कई सवाल है
नारी तुम केवल श्रद्धा हो!
पूछ रहा हर बार है…
मुक्ति 🖋️🙏🏻

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