मैं _जीकर रोज मरता हूं मैं_मरकर रोज जीता हूं,
मैं जीकर रोज मरता हूं मैंमरकर रोज जीता हूं,
हुआ_ तन्हा_अकेला अब_ गमों के_ घूंट पीता हूं
नजर आए न वो मुझको_ निगाहे ढूंढती जिसको
में जब जब चांद को देखूं ,उसी को देख जीता हूं
✍️ कृष्णकांत गुर्जर