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9 Jun 2025 · 3 min read

वर्तमान - एक चिंतन

वर्तमान में समूह मानसिकता का प्रकोप इतना अधिक है , कि व्यक्तिगत सोच महत्वहीन होकर रह गई है ।
यदि कोई अपनी सोच मुखर रखने का प्रयास करता है तो उस सोच को कुत्सित प्रयासों द्वारा दबा दिया जाता है।
सत्य की सार्थकता एवं व्यावहारिक न्याय की अपेक्षा
प्रश्न-चिन्ह बनकर रह गईं है।
मानवता के मापदंड सद्भावना , सहानुभूति , सच का साथ , अन्याय का विरोध इत्यादि ; स्वार्थपरक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए नाटकीयता के आवरण में लिपटे हुए प्रतीत होते हैं।
मनुष्य को यथार्थ से परे काल्पनिक जगत में विचरण करने के लिए बाध्य किया जाता है , झूठ को सच के आवरण में लपेटकर इस तरह एक प्रस्तुत किया जाता है कि वह सच प्रतीत हो और सत्य को झूठे तर्कों द्वारा भ्रमित कर झूठा सिद्ध किया जाता है।

मनुष्य के अज्ञान , अंधविश्वास एवं अंधश्रृद्धा का भरपूर लाभ झूठ के प्रचार एवं प्रसार में किया जाता है।
अर्ध-ज्ञान के प्रचारक एवं प्रसारक सत्य को
तोड़-मरोड़कर कर इस प्रकार प्रस्तुत करने में दक्ष हैं ,
कि वह जनसाधारण को सत्य प्रतीत होकर उन्हे प्रभावित कर सके।
जनसाधारण के जीवन को धर्म एवं जातिवाद की अंधश्रृद्धा के अधंकार में धकेलकर राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति की जाती है। जिसमें किसी समुदाय या जाति विशेष को चिन्हित कर बलि का बकरा बनाया जाता है।
प्रबुद्ध वर्ग मूकदर्शक बने अनैतिक क्रिया कलापों को देखते रहने के लिए बाध्य हैं,क्योंकि बाहुबल और
शासन-तंत्र में तानाशाही प्रवृत्तियों के प्रभाव के चलते उन तत्वों के विरुद्ध उठती आवाज को उद्-भव मूल पर ही दबा दिया जाता है , या विरोधियोँ को ही समूल नष्ट कर दिया जाता है।
देश की अर्थव्यवस्था पर कुछ पूँजीपतियों का नियंत्रण शनैः शनैः दृष्टिगोचर हो रहा है ,जो सत्ता पर स्थित राजनेताओं को सत्ता के शतरंज की बिसात पर पासे की तरह उपयोग कर अपने निहित स्वार्थ की पूर्ति में लगे हुए हैं।
उन्हे देश की अर्थ व्यवस्था की प्रगति , देश के विकास , एवं ज्वलंत समस्याओं से कोई सरोकार नही है।
जिसके फलस्वरुप देश के शीर्षस्थ नेतागण उनके हाथों कठपुतलियों की तरह बन कर रह गये हैं।
देश के राजनेताओं में राष्ट्रीयता एवं राष्ट्र के प्रति समर्पण का अभाव है , राष्ट्रहित के स्थान पर व्यक्तिगत तुष्टिकरण सर्वोपरि हो गया है।
देश के सकल घरेलू उत्पाद में कमी आ गई है।
लघु एवं कुटीर उद्योग लगभग बंद हो चुके है , या बंद होने की कगार पर हैं । छोटे और लघु व्यवसाय शासन द्वारा प्रोत्साहन के अभाव में अपने अस्तित्व की रक्षा में बड़े व्यवसायियों की शरण में जाने के लिए विवश होकर शोषण के शिकार हो रहे हैं।
सेना पर होने वाले खर्च पर कटौती करने एवं सैनिकों हेतु कल्याणकारी योजना के अभाव के कारण सेना का मनोबल आहत हुआ है। सैनिकों की भर्ती में अग्निवीर योजना के कारण सैनिकों में वर्ग भेद उत्पंन हुआ है ,जो सेना में अनुशासन ,एकजुटता , एवं समर्पित सेवाभाव के लिए घातक है , एवं आंतरिक विद्रोह की संभावना को जन्म देता प्रतीत होता है।
अपराधियों को राजनैतिक प्रश्रय मिलने से अपराधियों के हौसले बुलंद हुए हैं। ईमानदार एवं कर्तव्यनिष्ठ शासकीय कार्यपालक अधिकारी एवं न्यायविद् कार्यपालिका एवं न्यायपालिका में राजनीतिक हस्तक्षेप से हतोत्साहित हुए हैं।
अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ठोस गुट निरपेक्ष विदेश नीति के अभाव के कारण देश की गरिमा एवं संप्रभुता परआँच आई है।
समय- समय पर प्रतिकूल अध्यादेश जारी कर जनसाधारण में एक तनाव एवं अशांति का वातावरण निर्मित किया जाता है , जिसके पृष्ठ में निहित राजनैतिक स्वार्थपूर्ति का लक्ष्य होता है।
आम जनता हेतु कल्याणकारी योजनाओं के स्थान पर कुछ चुने हुए विशिष्ट लोगों लाभ पहुँचाने के लिए बड़ी बड़ी योजना में शासन द्वारा निवेश किया जाता है ।
जबकि देश का आम नागरिक मूलभूत सुविधाओं से वंचित रहता है।
देश में कुछ ऐसे क्षेत्र जिसमें शासन का वर्चस्व था , जैसे रेल सेवाएं , एयरपोर्ट प्रबंधन , रक्षा उत्पादन ,अनुसंधान एवं विकास , तथा बंदरगाह प्रबंधन , बैंकिंग एवं वित्तीय सेवाएं इत्यादि का निजीकरण करने से शासन का नियंत्रण इन क्षेत्रों में समाप्त हो रहा है।
निजीकरण के कारण इन क्षेत्रों में एकाधिकार को बढ़ावा मिला है। जिसके चलते अनेक विसंगतियों के पैदा होने का खतरा पैदा हुआ है ,जिसके दूरगामी नकारात्मक प्रभाव आम जनता को भुगतने पड़ेंगे।
अंततोगत्वा , यह कहना अतिश्योक्ति नही है कि हम विकास के पथ से भटककर जाने -अनजाने विनाश के पथ की ओर अग्रसर हो रहे हैं। यदि समय रहते हम सभँलकर सुधर न पायें तो हमारा भविष्य अंधकारमय होगा। जिसके जिम्मेदार हम स्वयं होगें।

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