समीक्षा: जीवन का समर
समीक्षा :- जीवन का समर
आदरणीय डॉ. सरला सिंह जी,
सादर प्रणाम !
आपकी पुस्तक ‘मेरे जीवन का समर'(कहानी संग्रह) पा कर बड़ी प्रसन्नता हुई । अध्ययन पश्चात पुस्तक पर समीक्षात्मक टिप्पणी –
डॉ. सरला सिंह जी ने अपनी कहानियों में व्यक्ति की जागृत चेतना और समय की सच्चाई को रेखांकित किया है। आज के संदर्भ में व्यक्ति जिस दौर से गुजर रहा है उसके भीतरी और बाहरी व्यक्तित्व में जो जुड़ और घट रहा है उसका विवरण इन कहानियों में प्रस्तुत हुआ है रिश्तों में एक ठंडा पन सा आ गया है घर के व्यक्ति ही व्यक्ति को गिराने की कोशिश करते हैं, परिवेश की सारी बारीकियों के साथ एक जीते जागते संघर्षरत व्यक्ति और जीवन अनुभव को डॉ. सरला सिंह जी ने सत्य निष्ठ भाव में प्रस्तुत किया है व अपने लेखन के माध्यम से सामान्य व्यक्ति के दुख दर्द को उसकी आकांक्षाओं को और व्यक्ति में निहित व्यक्ति को पकड़ने का सफल प्रयास किया है और वह इसमें सफल भी रही हैं। इनका लेखन दर्शाता है कि एक सामान्य व्यक्ति की रुचि अरुचि स्वतंत्र नहीं रहती है आर्थिक विषमता उसे विकृत करती रहती है, मारती रहती है और धीरे-धीरे उसकी रुचि ही नहीं वह व्यक्ति भी जीवन समर में हार जाया करता है और जीवन से समझौता कर लेता है आप ने अपने लेखन में सामान्य जन से प्राप्त अनुभवों का संवेदनात्मक अर्थ तलाश कर उन अर्थों में निहित विचारों की ऊर्जा को सक्रिय करके सामान्य जन के हित में लगाने का सुकार्य किया है। अपने आसपास फैली दुनिया को खुली आंखों से सही और साफ-साफ देखने की कोशिश लेखन में की गई है कहानी आशादीप में लौकिक भाषा का आंशिक प्रस्तुतीकरण “कलमिया हिलाये कलेक्टर ना बनबू चला काम करा” मनभावन है चालीस रुपये, भीख मत मांगना, त्याग, साधना, रोटी, ईश्वर, स्वाभिमान सुनहरी यादें आदि कहानियां बहुत ही शिक्षाप्रद हैं डॉ. सरला सिंह जी आपका अनवरत लेखन सराहनीय है शिक्षाप्रद है भविष्य के लिए शुभकामनाएं एवं अभिनंदन !
डॉ. राम सिंह
संपादक
‘राम से बड़ा राम का नाम’