मानव के हत्यारे
बनें भिखारी घूम रहे हैं, सफेद टोपी वाले।
फकीर बन करके फिरते हैं,जो मन के हैं काले।।
पाक नाम की माला जपते, आतंकी के साले।
कोई समझ नहीं पाता है, इनके खेल निराले।।
छीना झपटी खून खराबा,चोरी और डकैती।
ज्ञान नहीं धेले भर का है, करते सदा बकैती।।
देश विरोधी बातें करते,खून में है गद्दारी।
पाक को अपना मित्र समझते,अकल गई है मारी।।
दिनभर झूठा राग अलापें, बनते सबके काका।
मौका पाकर रात्रि पहर में,डालें घर पर डाँका।।
दया धर्म की बातें करते, घृणा हृदय में पाले।
एक हाथ में फूल सुकोमल, दूजे कर में भाले।।
नहीं भरोसा इनका करना, देते हैं ये धोखा।
दिनभर भरते रहते हैं ये, कारतूस का खोखा।।
अपनी बंदूकों से जानें,कितनें पशु हैं मारे।
जीवों के ही नहीं अपितु हैं,मानव के हत्यारे।।
स्वरचित रचना-राम जी तिवारी”राम”
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)