ये कैसा धोखा दिया
चमन से बात की,
फूल को न्यौता दिया
बहारों ने ही लेकिन
हमें चौंका दिया।
रंग, रूप, गंध, रस
संग तेरे चले गए
खिज़ा हंस रही
ये कैसा धोखा दिया।
हिम्मत से भरा दिल
कमजोर नही था
बेबस नाउम्मीद
होने का मौका दिया।
पार दरिया करने
जो उतरे तो डूब गए
क्यों दर्द से भरी
यादों की नौका दिया।
प्यार की इक निशानी
ये अंगूठी ही थी
रूठकर हाय ! हमसे,
हमको लौटा दिया।
-देवेंद्र प्रताप वर्मा ‘विनीत’