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8 Jun 2025 · 1 min read

लहर ने जब बिखरते वक़्त मुड़ के पुल को देखा था

लहर ने जब बिखरते वक़्त मुड़ के पुल को देखा था
नदी के बहते पानी पर किसी का नाम लिक्खा था

अनोखा शख़्स था उस से मिलाया हाथ जब मैं ने
लगा जैसे कि उस की उँगलियों में दिल धड़कता था

उसी सूखे शजर के नीचे तेरी राह तकता हूँ
बिछड़ते वक़्त तू जिस से लिपट के ख़ूब रोया था

गली के एक घर में काँच की ऐसी भी खिड़की थी
सुब्ह होती थी जिस के खुलने पे सूरज निकलता था

किसी की बद-दुआ’ का है असर अब उड़ नहीं सकता
नहीं तो ये परिंदा आसमाँ से बात करता था

सजाए अपने पैरों पर महावर शाम बैठी थी
तसव्वुर में किसी की याद का दिन ढलने वाला था

पुरानी मेज़ की खोली दराज़ें तो हँसी आई
किसी के प्यार में हम ने छुपा के क्या क्या रक्खा था

उसे इस बात का एहसास अब भी सालता होगा
अगर मैं चाहता उस को हरा कर जीत सकता था
संदीप ठाकुर

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