"खुद को ढूंढता मैं..."
मैं खुद से लड़ रहा हूं,
खुद में खुद को ढूढ रहा हूं,
खुद को पाया तो देखा,
कितने टुकड़ों में बट गया हूं।।
कितने है रूप मेरे,
हर रूप में उलझ गया हूं,
किसी को मिला, किसी को नही,
जिसे मिला, वो भी दुखी,
जिसे न मिला, वो भी दुखी,
पर किसी ने हमे समझा ही नही।।
अपनों की जरूरतें पूरी करते करते,
खुद की जरूरतों का पता ही नही चला,
अपनों के यक्ष प्रश्नों के बीच,
प्रश्नों के शोर में खुद को ढूढ़ रहा हूं।।
कितने टुकड़ों में बट गया हूं।।
जिनसे कहने थे मन के भाव,
वो भी खुद में खोए हुए है,
प्रश्नों के उत्तर बनते-बनते,
खुद एक प्रश्न बन गया हूं,
जिम्मेदारियों का बोझ उठाते-उठाते,
जीवन के बोझ में दब गया हूं,
कितने टुकड़ों में बट गया हूं।।