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7 Jun 2025 · 5 min read

*रिपोर्ताज*

#बीती_रात
राधिका कृष्ण इक हो गए, प्रेम का नाम बृज हो गया।।
चार घंटे चला 7 लाख का #कवि_सम्मेलन।
आधा पैसा वसूल, बाक़ी गया फिजूल।
*आधी रात के बाद जमा रचनाकारों का रंग।
*पुरानी बेशर्मिया रही बरकरार, कुछ हुए नवाचार।
“10 हज़ार से पौने 2 लाख तक के चेहरे रहे शामिल।*
#प्रणय_प्रभात
श्योपुर, 07 जून 2025
#श्री_हजारेश्वर_महादेव_मेले के मंच पर बीते एक दशक का इतिहास बीती रात भी ख़ुद को दोहराता दिखा। नियत समय से पूरे डेढ़ घंटे की देरी से आरंभ हुआ अखिल भारतीय कवि सम्मेलन क़रीब 4 घंटे निर्बाध रूप से चला। अनुमानित 7 लाख रुपए के इस आयोजन में 11 रचनाकारों की भागीदारी रही। जिनमें कवयित्रियों की संख्या 5 रही। जिसने मंचीय आयोजन के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा। यह और बात है कि श्रोताओं के दिल पर अपनी छाप सबसे मंहगी #लखनऊ की #कविता_तिवारी व #आगरा की #डॉ_रुचि_चतुर्वेदी ही छोड़ पाई। रुचि चतुर्वेदी लगातार दूसरे साल मंच पर थीं, जबकि कविता तिवारी क़रीब 8 साल बाद आमंत्रित की गई थीं।
बाक़ी 3 ने तालियां कविता व प्रस्तुति के बजाय मंचीय लटकों झटकों, एक रात के नातों और भावनात्मक अपीलें कर कर के बटोरीं। मुरैना की #शिवानी_प्रेरणा ने श्योपुर को बुआ, #दीपिका_माही ने बहिन का शहर बताया तो संचालक #भूपेंद्र_राठौर ने भांजे के तौर पर अपना परिचय देते हुए भाई भतीजावादी घुसपैठ को ख़ुद ही रेखांकित कर दिया। रात साढ़े 10 बजे पारंपरिक औपचारिकताओं के साथ आरंभ कवि सम्मेलन में जिले की #बेशर्मी की परिपाटी बीती रात भी सुपोषित हुई।
मंच पर बाराती की तरह विराजित मेहमान रचनाकारों से पहले घराती के रूप में मेजबान नपाध्यक्ष, उपाध्यक्ष व पार्षदों ने सीएमओ व मातहतों से पहले स्वागत अपना कराया। इससे पहले मुख्य अतिथि के रूप में पूर्व मंत्री रामनिवास रावत सहित #भाजपा के नेताओं का सत्कार किया गया। जिस पर दर्शक दीर्घा में टिप्पणियां का माहौल बना दिखाई दिया। हैरत की बात यह रही कि देश दुनिया में कुशल संचालन के लिए प्रसिद्ध #अरुण_जेमिनी को जबरन अध्यक्ष की आसंदी के साथ संचालन का जिम्मा वीर रस के कवि के नाम पर जातीय अनुशंसा से आए सस्ते कवि को सौंप दिया गया। जो संचालन के नाम पर अपनी टिप्पणियों व चलताऊ पंक्तियों से काम चलाता रहा।
5 कवियित्रियों की मौजूदगी के बावजूद मंच के सबसे बड़े गीतकार #डॉ_विष्णु_सक्सेना का सरस्वती वंदना प्रस्तुत करना भी कुछ अजीब सा रहा। एक लंबे अंतराल के बाद हाड़ौती गीतकार के रूप में पड़ोस के #बारां जिले से बुलाए गए #पवन_गोचर अच्छे स्वर के बाद भी श्रोताओं को मज़ा नहीं दे पाए। उनके बाद #बडौदरा की #श्वेता_सिंह भी शिवानी प्रेरणा की तरह सुर ताल के अभाव में जमानत बचाने की कोशिश से आगे नहीं बढ़ पाईं। यह अलग बात है कि तालियों की मांग भीड़ ने हर बार उदारता से पूरी की। लगभग मखौल उड़ाने के अंदाज़ में। आधा आयोजन हल्की रचनाओं व प्रभावहीन प्रस्तुतियों की भेंट चढ़ गया।
आधी रात के बाद कवि सम्मेलन को श्योपुर की पुरानी परम्परा के अनुसार कवि सम्मेलन बनाने का काम आध्यात्मिक श्रृंगार की कवियत्री डॉ. रुचि चतुर्वेदी ने किया। जिन्होंने जानदार आवाज, शानदार अंदाज के साथ सुंदर मुक्तक व गीत की प्रस्तुति से श्रोताओं का दिल जीता। प्रेम की पावनता को स्वर देते हुए डॉ. रुचि ने सार्थक व शिष्ट रचनाओं का पाठ किया। कुछ ऐसे भावों के साथ
*पुण्य चरणों की रज हो गया,
भावनाओं का ध्वज हो गया।
राधिका कृष्ण इक हो गए,
प्रेम का नाम बृज हो गया।।*
बने हुए माहौल को मनमौजी अंदाज में हास्य व्यंग्य की रोचक व सरस टिप्पणियां व चुटीली रचनाओं से ऊंचाई देने में सफल रहे एक अरसे बाद दूसरी बार #धार से आए #जॉनी_बैरागी। जिन्होंने एक एक पंक्ति पर ठहाके लगवाते हुए अपना काम बखूबी पूरा किया। राजनीति, ध्रुवीकरण और अपसंस्कृति पर करारे प्रहार करने वाले मालवा अंचल के जॉनी ने आयोजन में और जान डाली।
आयोजन को देशभक्ति, मातृशक्ति व सैन्य शक्ति से जुड़े मुक्तकों व ओजस्वी स्वरों के साथ शीर्ष पर ले जाकर खड़ा करने का काम किया कविता तिवारी ने। ऑपरेशन सिंदूर, बेटी बचाओ अभियान सहित राष्ट्रीय पराक्रम व संप्रभुता पर केंद्रित सशक्त व तीक्ष्ण रचनाओं का पाठ कर कविता ने सिद्ध किया कि वो मंच की सबसे मंहगी कवियत्री क्यों हैं। सिंदूर की ताकत को रेखांकित करते उनके तार्किक गीत ने माहौल को मार्मिक भी बनाया। देखिए एक बानगी
*भवानी भद्रकाली हैं जिन्हें समझे थे तुम अबला।
पड़ोसी ख़ौफ़ में सोचे कि क्या होगा कदम अगला।।
हैं बजरंगी के बेटे जानकी के मान की खातिर।
बहाकर ख़ून दुश्मन का लिया सिंदूर का बदला।।*
तमाम बार आती रहीं #चित्तौड़ की दीपिका माही काव्यपाठ के क्रम में कविता तिवारी द्वारा रचे गए रोमांच के माहौल को बेध पाने में नाकाम रहीं। हाड़ौती में दोहे पढ़ने का उनका निर्णय भी कामयाब नहीं रहा। ख़ास बात यह है कि कामयाबी के झंडे वो पिछले कवि सम्मेलनों में भी नहीं लहरा पाईं। ऐसे में उन्हें आमंत्रित करने का कारण टीम बनाने वाले ही बता सकते हैं। जो साल दर साल नाकाम चेहरों पर दांव लगाते आ रहे हैं।
इसी क्रम को आगे बढ़ाया #हाथरस से आए देश के शीर्षस्थ गीतकार डॉ. विष्णु सक्सेना ने। तमाम बार शहर का दिल जीतते रहे डॉ. विष्णु ने सुरीले स्वरों में एक एक पंक्ति पर तालियां बटोरीं। एक नए मुक्तक व कुछ पुराने मुक्तकों पर हर बार की तरह वाहवाही पाने में पूरी तरह कामयाब विष्णु सक्सेना ने अरसे बाद एक नया गीत भी प्रस्तुत किया। जो आयोजन को सार्थक बनाता प्रतीत हुआ। पेश हैं कुछ पंक्तियां
*जो हाथ थाम लो वो फिर न छूटने पाये,
प्यार की दौलतें कोई न लूटने पाये।
जब भी छूलो बुलंदियां तो ध्यान ये रखना,
ज़मीं से पाँव का रिश्ता न टूटने पाये।।*
रात के तीसरे पहर में सभापति के तौर पर हास्य कवि अरुण जेमिनी ने हरियाणवी मस्ती और बेबाकी से जुड़ी रोचक बातों के साथ एक छोटी सी कविता द्वारा कार्यक्रम का समापन किया। उन्होंने पढ़ा
*भरत सा भाई,
लक्ष्मण सा अनुयायी।
आँखों में पानी,
दादी की कहानी।
ग़रीब को खोली,
आंगन में रंगोली।
परोपकारी बंदे,
और अर्थी को कंधे।
ढूंढते रह जाओगे।।*
कहा जा सकता है कि 11 की जगह कुल 6 या 7 कवि कवियित्रियों को बुला कर नगरपालिका कवि सम्मेलन के नाम पर बेकार गया आधा पैसा व आधा समय बचा सकती थीं। जो दूसरे दौर के तौर पर बड़े व सफल रचनाकारों की और बेहतर प्रस्तुतियों से सजता। उम्मीद की जानी चाहिए कि थोथी वाहवाही के चक्कर में निकाय का पैसा फूंकने और मंच की झूठी तारीफों से फूल कर कुप्पा होने वाली परिषद व उसके कर्ता धर्ता अपनी सोच में थोड़ा सा सुधार करने का प्रयास करेंगें।

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