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7 Jun 2025 · 3 min read

एआई और भविष्य: मन का बदलता परिदृश्य

कभी घोड़े से खींची जाने वाली गाड़ियाँ, फिर भाप के इंजन और अब कृत्रिम बुद्धिमत्ता – इंसानी सभ्यता ने तकनीक की कई लहरों को देखा है। पर जो लहर अब उठ रही है, वह सिर्फ मशीनों या कंप्यूटरों की नहीं है; यह हमारे मन और समाज की नींव को भी हिला देने वाली है। आज जब हम एआई की बात करते हैं, तो यह केवल तकनीकी प्रगति का सवाल नहीं रह गया है, बल्कि यह हमारे अस्तित्व, पहचान और भविष्य की उस गहराई से जुड़ गया है, जिसे हमने शायद पहले कभी इस रूप में महसूस नहीं किया।

जब कोई सुनता है कि उसकी नौकरी – उसका रोज़गार, उसकी पहचान, उसका आत्मसम्मान – आने वाले कुछ वर्षों में मशीनों द्वारा छीना जा सकता है, तो वह सूचना एक आंकड़ा नहीं रहती। वह एक गहरी व्यक्तिगत चोट बन जाती है। ड्राइवर, कॉल सेंटर एजेंट, फैक्ट्री वर्कर, यहां तक कि कोडर या इंजीनियर – जो कभी सबसे सुरक्षित माने जाते थे – अब इस बदलाव की चपेट में हैं। यह केवल रोज़गार खोने की बात नहीं है; यह उस ज़मीन के खिसकने की बात है जिस पर हम अपनी पूरी जिंदगी खड़ी करते आए हैं।

इस अस्थिरता से जो भावनात्मक उथल-पुथल पैदा होती है, वह सिर्फ आर्थिक नहीं होती – यह मनोवैज्ञानिक होती है। “मैं कौन हूं, अगर मेरी नौकरी नहीं रही?” – यह सवाल धीरे-धीरे लोगों के मन में घर करने लगता है। मनोविज्ञान इसे ‘सेल्फ-आइडेंटिटी क्राइसिस’ कहता है, लेकिन सामान्य शब्दों में कहें, तो यह उस आईने के टूटने जैसा है जिसमें हम खुद को रोज़ देखा करते थे।

पर कहानी यहीं खत्म नहीं होती। क्योंकि जैसे हर बड़े बदलाव के साथ डर आता है, वैसे ही उसके साथ संभावनाएं भी जन्म लेती हैं। एआई का युग कुछ दरवाज़े बंद कर रहा है, पर बहुत से नए रास्ते भी खोल रहा है। जिन कामों में मानवीय संवेदना, रचनात्मकता, निर्णय लेने की क्षमता और भावनात्मक जुड़ाव ज़रूरी हैं – वे काम आगे और ज़्यादा अहमियत पाने वाले हैं। एक एआई शायद आपकी थकावट का कारण समझ ले, पर आपकी थकावट को महसूस कर सहानुभूति नहीं दे सकता। एक मशीन सलाह दे सकती है, पर वह आपके दर्द के साथ बैठकर खामोशी नहीं ओढ़ सकती। यह फर्क ही हमें विशेष बनाता है – और यही फर्क भविष्य को हमारे लिए ज़रूरी बनाता है।

इस नए युग में ज़रूरत होगी खुद को दोबारा खोजने की, खुद को लचीला बनाने की। ‘ग्रोथ माइंडसेट’ – यह शब्द जितना अंग्रेज़ी में तकनीकी लगता है, उतना ही हमारे जीवन के भीतर का सच है। हमें खुद से यह पूछना होगा कि क्या हम वो इंसान हैं जो नई चुनौतियों से डरकर भागते हैं, या वे जो हर चुनौती को एक नए रूप में देखने का साहस रखते हैं?

शायद अब वह समय आ गया है जब स्कूलों में केवल विषय नहीं, बल्कि सीखने की ललक और बदलाव के साथ चलने की मानसिक तैयारी सिखाई जानी चाहिए। सरकारों को भी अब केवल नीति बनानी नहीं, बल्कि इंसान के मन को समझकर नीतियों में संवेदनशीलता लानी होगी। अगर किसी के हाथ से नौकरी जाती है, तो उसके आत्मसम्मान को बचाने के लिए उसे नई स्किल्स, एक नया अवसर और सबसे ज़रूरी – एक सहारा देना ज़रूरी होगा।

यह युग, जहां एआई हमारी दुनिया में जगह बना रहा है, एक अलार्म की तरह है। यह हमें बता रहा है कि हम अपने काम को अपनी पहचान न बनाएं, बल्कि अपने भीतर की क्षमताओं को समझें। हम वही हैं जो सीख सकते हैं, बदल सकते हैं और फिर से शुरू कर सकते हैं। मशीनें चाहे जितनी तेज़ हों, पर वे इंसान की तरह हार से सीखकर आगे बढ़ना नहीं जानतीं।

तो हां, एआई आ रहा है – वह बहुत कुछ बदलेगा। लेकिन अगर हम तैयार हैं, मन से लचीले हैं, और अपने भीतर झाँकने का साहस रखते हैं, तो यह बदलाव हमें मिटाएगा नहीं, बल्कि एक नए रूप में गढ़ेगा। यह अंत नहीं है – यह एक नई शुरुआत है।

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