कल जो सरकार में थे आज गुनहगार है
कल जो सरकार में थे आज गुनहगार है
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कल जो सरकार में थे आज गुनहगार है,
कल जो गुनहगार थे वो आज सरकार है।
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बदलता किरदार फ़कत,कुर्सी के खातिर,
बस नही सजता,वो जनता का दरबार है।
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सता के सिहासन पर अब तक जो बैठा,
कहता सभी को, हम तुम्हारे मददगार है।
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जुबाँ की जंग में गिरे यहाँ सभी के ज़मीर,
गड़े मुर्दे उखाड़ रहे है ये कैसे समझदार है।
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गरीब पिस रहा है घुन की तरहा हर रोज,
मजलूम, बेबसों की सुनता नही पूकार है।
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मेहनतकश खूब बहाता खून ओ पसीना,
अफसोस ‘जैदि’ मिलती न सही पगार है।
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शायर :-“जैदि”
डॉ.एल.सी.जैदिया “जैदि”
बीकानेर।