ऐसे ही कोई शख्सियत इस्तेबाल नहीं होती
ऐसे ही कोई शख्सियत इस्तेबाल नहीं होती
कि उसकी राजसी ठाठ नहीं होती
वो तो हुक्म था ज़माने का नहीं तो
मेरी कलम से भी मुलाकात नहीं होती
मैं कैसे वायदे करु नाराजगी में भी
तेरा इल्म, तेरा जश्न बरकरार रखने को
उस समय तो मेरी खुदसे भी बात नहीं होती