कहाँ भटकते इस दुनिया में, कोई दर - दरबार नहीं।

कहाँ भटकते इस दुनिया में, कोई दर – दरबार नहीं।
सिवा आपके कोई पीरों, से कर सकता पार नहीं।
कौन अकारण रखता जग में, ध्यान कहीं हम दीनों का?
सबका प्यार चखा है लेकिन, कहीं आप -सा प्यार नहीं।।
अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’