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6 Jun 2025 · 1 min read

मैं अकेला ही चला था

मैं अकेला ही चला था
रास्ते जुड़ते गए।

हर तरफ जंगल ही था
रास्ते बनते गए।

चीर कर उस रात को
नया सवेरा आ गया।

बहुत हुआ सुखा अब तो
आसमां में बादल छा गया।

प्यारी सी बरखा बरस पड़ी
धरती से अंकुर फुट पड़ा।

चिड़िया भी लगी चहकने को
जुगनू भी रोशन हो गया।

सब तारे झिलमिल हो उठे
चांद भी जगमग हो गया।

अब न कोई डर रहा
दीपक हर दिल में जल चुका।

“मैं” से काफिला बना
जो आसमां तक जा चुका।

@ विक्रम सिंह

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