हाइकु

घटती साँसे
भूलती धड़कनें
सुप्त चेतन।
उड़ता पंछी
कर रहा सफ़र
दूर अकेला।
टूटे सपने
बिखरते मनके
डोर पुरानी।
मोह के धागे
उलझाते मन को
अखियाँ जागे।
उलझी बात
सालती दिन रात
बुरे हालात।
घनी थकन
निष्काषित जीवन
देता चुभन।
झुकती साख
कराहती पल पल
मिला न हल।
ठहरी नदी
बढ रही तपन
कैसा जीवन।
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